Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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समयसुन्दर का जीवन-वृत्त
दीयतेज्ञानसद्भावः, क्षीयते पशुवासना।
दानक्षपण संयुक्ता दीक्षा तेनेह कीर्त्तिता॥१ अर्थात् जिसके द्वारा ज्ञान दिया जाता है और पशुवासना का क्षय होता है, ऐसी दान और क्षपणयुक्त क्रिया को दीक्षा कहते हैं।
कवि को दीक्षा प्रदान करने वाले आचार्य जिनचन्द्रसूरि हैं। कवि के व्यक्तित्व का विकास भी इनकी ही उपस्थिति में और इनके ही प्रसाद से हुआ था। वादी हर्षनन्दन ने अपने गुरु-गीत में यह दर्शाया है कि जिनचन्द्रसूरि ने कवि को स्वहस्त से दीक्षा प्रदान की थी। कवि ने इसी कारण अपने स्तवनों में गुरु के नाम के साथ प्रगुरु के नाम का भी आस्थापूर्वक उल्लेख किया है और गुरु का नाम तो उन्होंने लगभग अपनी समस्त रचनाओं में उल्लिखित किया है। यद्यपि इनके गुरु सकलचन्द्रगणि इनकी प्रव्रज्या के कुछ ही वर्षों पश्चात् स्वर्गवासी हो गये थे, परन्तु कवि द्वारा प्रायः प्रत्येक रचना में सकलचन्द्रगणि का नाम देखकर ऐसा लगता है कि शिष्य का गुरु के प्रति सघन आत्मीय प्रेम था। गुरु के नाम को विश्व में प्रसिद्ध करना, उनके उपकारों से उऋण होने का सहज पथ है। कवि के गुरु सकलचन्द्र ही हैं, इसकी पुष्टि कवि ने अनेक स्थलों पर की है। पश्चकालीन कवियों ने भी इसी तथ्य को प्रस्तुत किया है। जबकि वर्तमान में आचार्य पद्मसागरसूरिजी ने समयसुन्दर की विलक्षण प्रतिभा की चर्चा करते हुए उन्हें आचार्य हीरविजयसूरि का शिष्य माना है। किन्तु यह बात किसी भी प्रमाण से सिद्ध नहीं होती है, क्योंकि एक तो १. उद्धृत - भारतीय संस्कृति और साधना, प्रथम भाग, पृष्ठ २६६ २. सई हथे श्री जिनचन्द्र।- नलदवदन्ती-रास, परिशिष्ट ई, पृष्ठ १३७ ३. (क) श्री खरतरगच्छ राजीया, श्री युगप्रधान जिनचन्दो रे॥
प्रथम शिष्य श्री पूज्यना, गणि सकलचन्द सुखकन्दो रे॥ समयसुन्दर शिष्य तेहना, श्री उपाध्याय कहीजइ रे।
-नलदवदंती - रास (७.२४-२५) (ख) चन्द्रकुले श्री खरतरगच्छे जिनचन्द्रसूरिनामानः।
जातायुगप्रधानास्तच्छिष्यः सकलचन्द्रगणिः॥ तच्छिष्य समयसुन्दरगणिना चक्रे................।
-दशवैकालिक-वृत्ति, प्रशस्ति २-३ ४. (क) जिनचन्द्रसूरि सइं हथे दीखिया, सकलचन्द्र गुरु शीशो जी।
समयसुन्दर गुरु चिर प्रतपै सदा, द्यै देवीदास आसीसो जी॥
- देवीदास कृत समयसुन्दरगीत, नलदवदन्ती-रास, परिशिष्ट ई, पृष्ठ १३६ (ख) वाल्हो लागे चतुर्विध संघने, सकलचंद गणि शीश।
- हर्षनन्दन कृत समयसुन्दरगीत. वही, पृष्ठ १३८ ५. द्रष्टव्य -(क) मोक्ष मार्ग में बीस कदम
(ख) प्रवचन-पराग, पृष्ठ १२९
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