Book Title: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth
Author(s): Nathmal Tatia, Dev Kothari
Publisher: Kesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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सन्देश
-शुभकामना
४३
प्रभूदयाल डाबड़ीवाल
८, डॉक्टर लेन,
नई दिल्ली
४ नवम्बर, १९८० राजस्थान के पाली जिला में कांठा प्रान्त में स्थित राणावास शिक्षा की दृष्टि से एक पिछड़ा हुआ क्षेत्र था, किन्तु उस क्षेत्र में भी श्री केसरीमलजी सुराणा जैसे कर्मठ व्यक्ति उत्पन्न हुए । उन्होंने अपनी कर्मठ साधना व सेवा के फलस्वरूप समस्त तेरापंथ जगत का विश्वास अर्जन किया। फलस्वरूप पिछले सैंतीस वर्षों में लाखों रुपयों का आर्थिक अनुदान प्राप्त किया।
प्राथमिक शिक्षा से प्रारम्भ कर माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षा-व्यवस्था के उपरान्त गत ५-६ वर्षों में महाविद्यालयी शिक्षा प्रदान की जाने लगी। साथ में सैकड़ों छात्र छात्रावास में प्रतिवर्ष निवास कर योग्य एव संस्कारी बने हैं। समस्त देश में इस शिक्षण संस्थान के छात्र फैले हुये हैं और कई मायनों में समाज को बड़ी सेवायें दे रहे हैं।
___संस्कार निर्माण व चरित्र उत्थान इस शिक्षण संस्थान का मुख्य उद्देश्य रहता है । यह एक अद्वितीय कार्य है, जिसको कर्मठ सुराणा साहब ने मूर्तरूप प्रदान किया है, इनकी समर्पित सेवाओं का ही प्रतिफल है ।
श्री सुराणाजी दीर्घजीवी बनकर शिक्षा जगत में अमुल्य सेवा देते रहें, यही मेरी हादिक शुभ कामना है।
-प्रभुदयाल डाबड़ीवाल
लाला बिहारीलाल जैन
अदम्य उत्साह, अटूट निष्ठा, आत्मविश्वास एवं दृढ़ संकल्प शक्ति मानव की सफलता एवं कार्य सिद्धि के मूल स्तम्भ होते हैं। इन गुणों के सहारे ही मानव महामानव की श्रेणी में पहुँचता है । जन्म और मृत्यु प्रत्येक शरीर का स्वभाव है । इसके मध्यवर्ती काल याने जीवन में जो कुछ मनुष्य कर जाता है, उसी से उसके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के महत्त्व को आंका जाता है । इस दृष्टि से कर्मयोगी श्री केसरीमलजो सुराणा महामानवों की श्रेणी में आते हैं।
आपके कर्मठ व सफल कृतित्व ने राणावास जैसे छोटे से नगण्य स्थान में अनेक महत्त्वपूर्ण शिक्षण संस्थान स्थापित कर नया कीर्तिमान स्थापित किया है । वस्तुतः वे ही शिक्षण संस्था व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के लिए प्रेरणास्पद बनते हैं, जिनका उद्देश्य होता है--सम्यक् ज्ञान का विकास करना, सुसंस्कारों का निर्माण करना, जीने की सात्त्विक पद्धति सिखाना और उन्नति के नये-नये आयामों को निर्मित करना । श्री सुराणाजी द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थान इन्हीं प्रवृत्तियों को साकार रूप देने में प्रयत्नशील हैं। इस रूप में आप समाज व राष्ट्र की बहुत महत्त्वपूर्ण सेवा कर रहे हैं । सशिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु आपने अपना सब कुछ तन-मन-धन समर्पित कर दिया है । आपकी सेवाओं के लिये समाज आपका चिरऋणी रहेगा। आपका जीवन सादा और सरलता के साथ-साथ धार्मिकता से भी ओत-प्रोत है । समग्रतः आपका व्यक्तित्व एवं कृतित्व सराहनीय, स्तुत्य एवं अनुकरणीय है। हमारी यही मंगल कामना है कि ऐसे महान व्यक्तित्व का योगदान व मार्गदर्शन समाज को सदैव मिलता रहे ।
-लाला बिहारीलाल जैन
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