Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७ उक्कस्सभंगो । एवं जाव० ।
२२. अंतरं दुविहं-जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्कस्साणुभागुदी. अंतरं जह० एगस०, उक्क. अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । अणुक्क० जह• एयस०, उक्क० अंतोमु० । शेषगतियोंमें उत्कृष्टके समान भंग है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
विशेषार्थ-मोहनीयकी जघन्य अनुभाग उदीरणा क्षपकौणिमें सकषाय भावके एक समय अधिक एक आवलि काल शेष रहने पर एक समय तक होती है, इसलिए इसका जघन्य
और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। जो जीव उपशमश्रेणिपर आरोहणकर अन्तमुहूर्त कालके बाद पुनः क्षपकश्रेणिपर आरोहण करता है उसके मोहनीयकी अजघन्य अनुभाग उदीरणाका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त देखा जाता है और जो जीव उपशम श्रेणिसे उतरते हुए अजघन्य अनुभाग उदीरणाका प्रारम्भकर कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तन काल तक अजघन्य अनुभाग उदीरणा ही करता रहता है उसके कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तन काल तक अजघन्य अनुभाग उदीरणा देखी जाती है, इसलिए ओघसे इसका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम अर्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण कहा है। मनुष्यत्रिकमें मोहनीयकी जघन्य अनुभाग उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट एक समय काल ओघके समान ही घटित कर लेना चाहिए। अजघन्य अनुभाग उदीरणाके कालमें विशेषता है। बात यह है कि मनुष्यत्रिकमें से कोई एक जीव उपशम श्रेणिपर चढ़ा। पुनः वहाँसे उतरते हुए एक समय तक उसने मोहनीय कर्मकी अजघन्य अनुभाग उदीरणा की। इसके बाद मर कर वह देव हो गया। इस प्रकार इस तथ्यको ध्यानमें रखकर मनुष्यत्रिकमें मोहनीयकी अजघन्य अनुभाग उदीरणाका जघन्य काल एक समय कहा। उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थिति प्रमाण है यह स्पष्ट ही है। शेष गतियोंमें जैसे उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल घटित कर आये हैं उसी प्रकार जघन्य और अजघन्य अनुभाग उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल घटित कर लेना चाहिए।
२२. अन्तर दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्य अन्तर काल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनके बराबर है। अनुत्कृष्ट अनुभागउदीरकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है।
विशेषार्थ—पहले ओघसे मोहनीयकी अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणाका जो जघन्य और उत्कृष्ट काल बतला आये हैं वही यहाँ उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणाका क्रमसे जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल जानना चाहिए। तथा ओघसे मोहनीयकी अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा अपने स्वामित्वको देखते हुए कमसे कम एक समयके अन्तरसे और अधिकसे अधिक अन्तमुहूर्त कालके अन्तरसे हो यह सम्भव है, इसलिए यहाँ उसका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है। खुलासा इस प्रकार है कि मोहनीयकी अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा करनेवाला जो जीव एक समय तक उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा करके एक समयके बाद पुनः अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा करने लगा उसके तो मोहनीयकी अनुत्कृष्ट