Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
गा० ६२]
मूलपयडिअणुभाग उदीरणाए कालो $ २०. आदेसेण णेरइय० मोह० उक्क० अणुभागु० जह० एयस०, उक्क० वे समया । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमं । एवं सव्वणेरइय० । णवरि सगढिदो । पंचिदियतिरिक्खतिय-मणुसतियम्मि मोह. उक्क० अणुभागु० जह ० एयस०, उक्क० वे समया । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० सगहिदी । पंचिंदियतिरिक्खअपज०-मणुसअपज्ज० मोह. उक्क० अणुभागुदी जह० एगस०, उक्क० बे समया । अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । देवेसु मोह० उक्क० जह० एगस० उक्क० बे समया । अणुक्क० जह० एयस०, उक्क० तेत्तीसं सागरो० । एवं सव्वदेवाणं । णवरि सगढिदी । एवं जाव ।
६ २१. जह० पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० जहण्णाणुभाग० जह० उक्क० एगस० । अजह० तिण्णि भंगा । जो सो सादिओ सपज्जवसिदो जह० अंतोमु० । उक्क० उवड्ढपोग्गल० । मणुसतिये मोह० जह० अणुभाग० जह० उक्क० एगस । अजह० जह० एग० उक्क० सगढिदी । सेसगदीसु
घटित कर लेना चाहिए। मात्र अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरणाके उत्कृष्ट कालको अपनी-अपनी गतिके उत्कृष्ट कालको ध्यानमें रखकर घटित कर लेना चाहिए । अन्य कोई विशेषता न होनेसे यहाँ हम उसका अलगसे निर्देश नहीं कर रहे हैं।
२०. आदेशसे नारकियोंमें मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। इसी प्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए। पञ्चेन्द्रिय तिर्यचत्रिक और मनुष्यत्रिकमें मोहनीय कर्मके उत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल अपनी-अपनी स्थिति प्रमाण है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है। अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। देवोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अनुत्कृष्ट अनुभाग उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। इसी प्रकार सब देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपनी-अपनी स्थिति कहनी चाहिए । इसी प्रकार अनाहाक मार्गणा तक जानना चाहिए।
२१. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मोहनीयके जघन्य अनुभाग उदीरकका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य अनुभाग उदीरकके तीन भंग हैं। उनमेंसे जो सादि-सान्त भंग है उसका जघन्य काल अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्टकाल उपार्ध पुद्गल परिवर्तन प्रमाण है। मनुष्यत्रिकमें मोहनीयके जघन्य अनुभाग उदीरकका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है। अजघन्य अनुभ उदीरकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी-अपनी स्थिति प्रमाण है।
१ त० प्रतौ जह• उक्क० इति पाठः।