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ही विधाता हो । आप ही पुरुषोत्तम हो । ऐसा घटाया हैं । उसके बादमें लिखा :
तुभ्यं नमस्त्रिभुवनातिहराय नाथ ।। पूरे जगत की पीडा दूर करनेवाले भगवान हैं।
भगवान का नाम लेने से आज भी उपद्रव शांत होते हैं । अगर ऐसा नहीं होता तो शांति, बृहत्-शांति, संतिकरं वगेरेह स्तोत्र गलत मानने पड़ेंगे । आज लाभशंकर डोकटरने कहा : 'बचपन से मुझे किसी महात्माने नवकार सीखाया, उसके प्रभाव से मैं बिच्छु का जहर उतार सकता हूं ।'
सुनकर आश्चर्य हुआ । हमें जो नवकार सामान्य लगता हैं, उनको वह मंत्र लगता हैं ।
__ मुल्लाजीने कूएंमें से पानी निकालकर देने पर सेठने आश्चर्यचकित होकर पूछा : कौनसा मंत्र हैं, तुम्हारे पास ?
उस मुल्लाजीने 'नवकार' मंत्र सुनाया । सुनकर सेठजी हंस पडे : यह तो मुझे भी आता हैं ।
पूज्य हेमचन्द्रसागरसूरिजी : यह कहां की घटना हैं ?
पूज्यश्री : बनी हुई घटना है, इतना पक्का । विश्वास न आता हो तो आपके गुरु महाराजकी ही घटना कहूं ।
___हरिजन के कोई मुख्य व्यक्तिओंने मुशायरा जमाया । उस समय एक व्यक्ति जाता हैं, किंतु उसके लिए काम सिद्ध नहीं होगा. ऐसा किसीने कहा ।
सचमुच ही, जिस व्यक्ति के लिए यह गया था, वह व्यक्ति ही मर गया था ।
यह विद्या सीखने के लिए एक श्रावक ललचाया । २१ दिन जाप किया । अंतिम दिन स्मशानमें जाना हुआ ।
वह मलिन देवी नवकार के आभामंडल के कारण अंदर प्रवेश कर सकती नहीं थी ।
'तूं नवकार भूल जाये, तूं नवकार बंद कर दे तो ही मैं आऊं' देवीके इस वचनको ठुकराकर श्रावक नवकार के उपर दृढ श्रद्धावाला बना ।
बाहर से जानने को मिले उसके बाद ही अपने पास रही हुई वस्तुकी महिमा समझमें आती हैं। (२०nsonam Ho कहे कलापूर्णसूरि - ४)