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मामा माणेकचंदभाई के साथ हैद्राबादमें अक्षय :
अक्षयराज के मामा माणेकचंदभाई अत्यंत धर्मिष्ठ और वात्सल्यवंत थे । अक्षयराज के प्रति उन्हें बहुत ही प्रेम था । अक्षय के मोहक व्यक्तित्व और प्रज्ञा-पाटव से फीदा हुए मामा माणेकचंद अक्षय को हैद्राबाद ले गये, जहाँ व्यवसाय के लिए खुद रहते थे । तब अक्षय की उम्र आठ साल की थी । अक्षय की माता धर्मिष्ठ थी उसी तरह मामा भी धर्म से रंगे हुए थे । अतः माता द्वारा मिले हुए धर्म-संस्कार मामा द्वारा पुष्ट हुए। अतः प्रभुदर्शन, नवकारसी, तिविहार, नवकार मंत्र का स्मरण आदि प्राथमिक नियमों का पालन उसमें सहजता से आ गये ।
मामा का अपार वात्सल्य :
अक्षय पर मामा के चार हाथ थे । उनकी चकोर नजरने छोटे से अक्षयमें छिपा हुआ विराट व्यक्तित्व देख लिया था । इसलिए ही अक्षयमें व्यावहारिक या धार्मिक... किसी भी शिक्षण की कमी न रहे इसका पूरा ध्यान रखते थे । - मामा के अपार वात्सल्य के साथ व्यावहारिक शिक्षण के साथ धार्मिक अभ्यास भी वह करने लगा ।
__चैत्यवंदन, सामायिक, प्रतिक्रमण के सूत्र, भक्तामर इत्यादि मामा स्वयं उसे सीखाते थे । स्वयं प्रतिक्रमण करने बैठते तब अक्षय को भी साथ बिठाते और उसके पास सकलतीर्थ इत्यादि सूत्र बुलाते । छोटे बालककी मीठी-मीठी वाणी सुनते मामा आनंद से भर जाते थे । अक्षयराज के जीवनबाग के लिए मामा सचमुच एक माली का काम कर रहे थे । छोटे से बीजमें छुपा हुआ विराट वटवृक्ष माली से अज्ञात कैसे रह सकता हैं ?
अक्षय का वापस फलोदी आगमन :
इस तरह मामा के साथ आनंदपूर्वक समय गुजर रहा था । मुश्किल से १२ महिने हुए होंगे और वहां (हैद्राबादमें) प्लेग की भयंकर बिमारी फैल गई । एक के बाद एक मौत होने लगी । ये समाचार सुनते ही फलोदीमें रहे हुए माता-पिता अत्यंत चिंतित हुए । वैसे भी माता का मन हमेशा पुत्र को याद करने में लगा रहता हैं । बिमारी के ऐसे समाचार सुनकर कौनसी माता को चिंता कहे कलापूर्णसूरि - ४ 60mmwwwwwwwwwwwwwww ३३९)