Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 371
________________ शिक्षकने अक्षय को तीसरी कक्षा से पांचवी कक्षामें बिठाया वह बहुत ही संकेतभरी घटना हैं । यह घटना मानो अक्षय को कह रही थी : 'ओ अक्षय ! भावि जीवनमें तुझे इसी तरह सड़सड़ाट आगे बढना हैं । भाविके गुरु तुझे इसी तरह उन्नत आसन पर बिठाते रहेंगे ।' शिक्षक के खुद के चार हाथ होने पर भी अक्षय कभी सहपाठी विद्यार्थीओं के साथ उद्धत वर्तन नहीं करता था । 'मैं ऊंचा हूं । अब मुझे कौन कहनेवाला ? शिक्षक तो मेरे हाथमें ही हैं ।' ऐसा विचारकर सामान्य विद्यार्थी बहक जाता हैं, उच्छृंखल बन जाता हैं, शिक्षक को हाथमें रखकर दूसरों पर जुल्म मचाने लग जाता हैं, लेकिन अक्षय ऐसा नहीं था । वह तो ज्यादा से ज्यादा नम्र बनता जा रहा था । बराबर उस आम्रवृक्ष की तरह, जो फल आते ही नीचे झुक जाता हैं । अक्षय की ऐसी नम्रता देखकर शिक्षक ज्यादा से ज्यादा उस पर प्रसन्न रहने लगे । उनका अंतर पुकार रहा था : 'अक्षय अवश्य आगे बढेगा और सर्व को प्रिय बनेगा । क्योंकि आगे वही बढता है, जो उच्चता प्राप्त करने पर भी बहकता नहीं हैं, दूसरों को नीचा दिखाता नहीं हैं ।' इस प्रकार प्रारंभ से ही अक्षय अति विनीत था । बुद्धि के प्रमाणमें उसमें विनय की मात्रा जोरदार थी । करुणामूर्ति अक्षय की विचारणा : अक्षय अब धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था । उसके विचारों को पंख निकल रहे थे । उसका हृदय, उसका मन और विचार स्वभावसे ही कोमल थे । जब जब वह कोई घटना देखता तब अपने अलग दृष्टिकोण से उसका मूल्यांकन करता । हृदय कोमल होने से किसी का भी दुःख देख नहीं सकता था । किसी को दुःख से ग्रस्त देखकर हृदयमें झटके लगते । दूसरे का हाथ कटा हुआ देखता दो ऐसा गहरा संवेदन होता कि मानो मेरा ही हाथ कट गया हैं, मुझ पर ही दुःख आ पड़ा हैं । ऐसी गहरी संवेदनशीलता के कारण उसमें ज्यादा से ज्यादा दयाभाव / करुणाभाव विकसित होता गया । उसकी गहरी संवेदनशीलता मात्र मानव जगत या पशु-जगत तक ही ( कहे कलापूर्णसूरि ४wwwwwwwwwwwww. ३४१

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