Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 404
________________ अभिप्रायों की हेली 'कहे कलापूर्णसूरि' नामकी पुस्तक मिली। मात्र एक ही पेज पढा, और ऐसा ही लगा कि साक्षात् परमात्मा का मिलन इसी पुस्तकमें हैं। - आचार्य विजयरत्नाकरसूरि समेतशिखर तीर्थ 'कडं कलापूर्णसूरिए' पुस्तक मिली । पूज्यश्री के प्रवचनोंमें अमृत-अमृत और अमृत ही होता हैं इसमें दूसरा कुछ कहने जैसा ही नहीं। - पंन्यास मुक्तिदर्शनविजय गोरेगांव, मुंबई 'कडं कलापूर्णसूरिए' पुस्तक मिली । उपर का टाइटल देखकर ही पसंद आ जाये । अंदर प्रतिदिन के तिथि, तारीख और वार के साथ के प्रवचन, जीवनमें उतारने जैसा साहित्य हैं । - पंन्यास रविरत्नविजय गोपीपुरा, सुरत शासन प्रभावक आचार्य देवेश की जिनभक्ति - उत्साह - शासनप्रेम - परोपकार वृत्ति - पदार्थों को सरल करने की कला को भावांजलि... अवतरणकार दोनों गणिवर्यों की गुरुभक्ति, श्रुतभक्ति की भूरिभूरि अनुमोदना । - पुण्यसुंदरविजय गोडीजी मंदिर, पुना 'कडं कलापूर्णसूरिए' पुस्तक मिली । बहुत अल्प समयमें वाचनाओं का संकलन करके दलदार पुस्तक तैयार की । धन्यवाद । __ वाचनादाता पूज्यश्री की प्रभु-भक्ति प्रसिद्धि प्राप्त हैं, तो इसके और पीछले पुस्तक द्वारा आपकी गुरु-भक्ति प्रसिद्धि प्राप्त कर रही हैं । इस श्रेणि के पुस्तक आगे भी बाहर पड़ते रहे और अब जल्दी से 'कहेता कलापूर्णसूरि' प्रकाशित करो यही अभिलाषा । - गणि राजरत्नविजय डभोई (३७४ 00000000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - ४)

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