Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 406
________________ पूज्यश्री की वाचना - प्रेरक पुस्तकोंमें यह लेटेस्ट पुस्तक हैं । समस्त जैन संघ को आवकार्य अजातशत्रु की वाणी परोसती यह पुस्तक स्वयं ही 'अजातशत्रु' बनी रहेगी । उसमें कोई शंका नहीं हैं । आत्मदर्शनविजय जामनगर कहे, कलापूर्णसूरि ३ पुस्तक देखते ही हृदय नाच उठा । अद्भुत सर्जन हुआ हैं । प्रस्तुत पुस्तक पूज्यश्री की साधनापूत वाणी से भरपूर हैं । अथ से इति तक के वांचन से मानो कि शत्रुंजय की गोदमें बैठे हो ऐसा लगा । पुस्तक के पेज - पेज पर पूज्यश्री के शब्द-देह से दर्शन होते हैं । तो पुस्तक के चेप्टर - चेप्टर पर पूज्य श्री के सदेह दर्शन होते हैं । पुस्तक की पंक्ति-पंक्ति पर आगम के दर्शन होते हैं तो पुस्तक के वचन-वचनमें भक्ति योग की पराकाष्ठा (भगवान) के दर्शन होते हैं । सचमुच पूज्यश्री की साधनापूत वाणी का वैभव घर-घर, घटघट छा जायेगा । प्रस्तुत प्रकाशन द्वारा ऐसे अमूल्य सर्जन के बदल आपको धन्यवाद । — मुनि पूर्णरक्षित विजय सागरजैन उपाश्रय, पाटण पढी न होती तो शायद इस पुस्तकमें क्या खजाना भरा हैं ? इससे मैं अनजान रहती । -- सा. दिव्यदर्शनाश्रीजी 'कहे, कलापूर्णसूरि' पुस्तक पढने से पू. गुरुदेवश्री का आंतरिक परिचय हुआ । उनकी भक्ति, उनका ज्ञान, उनकी धर्म भावित मति.... यह सब जानने मिला । ३७६ कळळ सा. चरणगुणाश्रीजी पुस्तक 'कह्युं, कलापूर्णसूरिए' मिली । अनुभव की अटारी से आलेखित पुस्तकों का अनुभव क्या बतायें ? पुस्तक ही आदरणीय बन जाती हैं । साध्वी शशिप्रभाश्री सुरत १८ कहे कलापूर्णसूरि ४ -

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