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यह पुस्तक जीवन की साधनामें अत्यंत सहायक बनी हैं ।
___ - सा. सौम्यदर्शिताश्री 'कहे कलापूर्णसूरि' पुस्तक पढने से मेरे जीवनमें हुए लाभ को शब्दोंमें समाने असमर्थ हूं ।
- सा. हंसरक्षिताश्री पूज्यश्रीने इस पुस्तकमें ज्ञान - क्रिया - विनय - सरलता - जयणा - करुणा - जीवमैत्री - प्रभु भक्ति इत्यादि अगणित गुण तथा साधु होने की योग्यता से प्रारंभ कर पूर्ण साधुजीवन कैसा होना चाहिए? उसे किस तरह उच्च बनाना चाहिए? उसकी प्रक्रिया तक की सामग्री हमारे सामने धर दी हैं ।
- सा. हर्षकलाश्री कहे कलापूर्णसूरि भा-३ मिला हैं ।
स्व-जीवनमें बुनी हुई तथा स्व-पर के अनुग्रह के लिए कहे हुए और आपके द्वारा अत्यंत कुशलतापूर्वक अच्छी तरह संगृहीत की हुई पू. साहेबजी की वाचनाओं की यह पुस्तक अनेकों को अनुग्रह करनेवाली बनी हैं और बनेगी । सचमुच यह पुस्तक जीवन के विकास के लिए एक अमूल्य संपत्तिरूप हैं ।
- सा. कुवलयाश्री,
जूनागढ 'कहे कलापूर्णसूरि ३' पुस्तक देखकर - पढकर आनंद हुआ।
अनेकों की ऐसी कल्पना होती हैं कि पूज्यश्री तो पूरे दिन भगवान की भक्ति ही करते हैं । परंतु ऐसी पुस्तकों के माध्यम से पूज्यश्री के आंतरिक ज्ञान खजाने का पता चलेगा, और वह भी भगवत्-कृपा से प्राप्त होता हैं उसका भी साक्षात्कार होगा ।
आपका प्रयास बिलकुल सफलता के शिखर पर हैं ।
'क.क.सू.' के तीन भाग साथ हो तो लगभग सबकुछ मिल जाता हैं ।
- सा. कल्पज्ञाश्री
पाटण
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