Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 04 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 397
________________ समझकर खूब वात्सल्य और कुशलतापूर्वक नूतन आचार्यदेवश्री करने लगे और मुनिश्री कलापूर्णविजयजी को भी यह सामुदायिक सर्व जवाबदारीयोंमें सहयोगी के रूपमें साथमें रखकर व्याख्यान आदि की कुछ जवाबदारीयां सौंपी । ७२ वर्ष की बड़ी उम्र और पैर की तकलीफ के कारण चलकर विहार कर सके वैसी स्थिति न होने के कारण आश्रित मुनि-वर्ग की संयम-रक्षा इत्यादि विशेष कारणों को ध्यानमें रखकर अपवाद के रूपमें डोली का उपयोग करना पड़ा । मुनिश्री को पंन्यास-पद : मुनिश्री कमलविजयजी तथा मुनिश्री कलापूर्णविजयजी आदि मुनिओं की जन्मभूमि फलोदी (राज.) गांव का मुख्य श्रावक वर्ग चातुर्मास की विनंति करने आया । उनकी आग्रहभरी विनंति को लक्षमें लेकर पूज्यश्रीने अनुमति दी और संवत् २०२४ का चातुर्मास फलोदीमें हुआ । मुनिश्रीमें विनय, भक्ति, वैराग्य, समता, प्रवचन-शक्ति इत्यादि गुण अब तो सोलह कलाओं से खील उठे थे और कलापूर्णविजयजी सच्चे अर्थमें 'कलापूर्ण' बन चूके थे । चांद चांदनी के द्वारा सर्वत्र प्रसन्नता फैलाता हैं उस प्रकार मुनिश्री सर्वत्र प्रसन्नता फैला रहे थे । कच्छ-वागड़ आदि की जैन-जनतामें एक शांत, त्यागी और साधक आत्मा के रूपमें उनकी सुगंध फैल चूकी थी । प्रशमकी लब्धि इतनी प्राप्त हो चुकी थी कि चाहे जैसा क्रोधाविष्ट मनुष्य उनके पास आते ही ठंडे पानी जैसा बन जाता । अपनी ऐसी शक्ति से उन्होंने अनेक गांवों के झगड़े, जो वर्षोंसे शांत नहीं होते थे, उन्हें शांत किये थे । मनफरा महाजनवाडीमें फोटो रखना या नहीं ? इस बारेमें बहुत बड़ी तकरार चल रही थी, उसे पूज्यश्रीने कुछ समयमें मिटा दी । ऐसे-ऐसे अनेक गुणों से चारों तरफ उनकी चाहना बढने लगी और उन्हें पंन्यासपद से विभूषित करने की विनंतियां लंबे समय से चल रही थी । अतः पू.आ.श्री विजयदेवेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.ने उनकी सुयोग्यता जानकर 'भगवती सूत्र' के योगोद्वहनमें प्रवेश कराया । कहे कलापूर्णसूरि - ४ 650 0 9005065800 ३६७)

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