________________
पानी-पानी होता हैं । कहीं मैंढक न बनूं - ऐसा लग रहा हैं । ऐसी भयंकर गरमीमें मुझे पानी की प्यास लगती हैं, अतः पूज्यश्री की वाणी सुनने की इच्छा पूर्ण नहीं कर सकता हूं।
मेरा सिर लज्जासे झुक जाता हैं : ऐसे मासक्षमण के और धर्मचक्र के तपस्वीओं को देखकर ।
पूज्यश्री के पास करण, करावण और अनुमोदना का ढेर हैं । पू. यशोविजयसूरिजी भी इतने ही साधना-संपन्न हैं । . पू. अरविंदसूरिजी को लंबी ओली चल रही हैं । जिसका पारणा कार्तिक (राज. मृग.) वदि १ को हैं । आप सब वहां अवश्य पधारेंगे, ऐसी भावना हैं ।
नडियाद, निपाणी वगैरह स्थलोंमें नीकले हुए वरघोड़ेमें धर्मचक्रवर्ती भगवान का स्वागत मुसलमानोंने भी किया था । वरघोड़े की यह महिमा हैं । हमें वरघोड़ा देखना नहीं हैं, वरघोड़ेमें आना
सुरतमें सिन्धी समाजने वरघोड़े के समय बाजार बंध रखी थी । ऐसे विशिष्ट भाव स्व-हृदयमें भी प्रकट करने हैं। इस वरघोड़ेमें सभी को पूज्यश्री के स्वजन-परिजन बनकर जुड़ना हैं ।
पूज्यश्री के 'आगे BAND और पीछे END' ऐसा नहीं होना चाहिये । पूज्यश्री के पीछे श्रावक-वर्ग उसके बाद रथ, साध्वीजीयां, श्राविका-वर्ग-इस प्रकार क्रमशः जुड़ेंगे तो शोभा बढेगी ।
पूज्य कलाप्रभसूरिजी : पूज्य गुरुजीने इस प्रसंग पर तपयोग के बारेमें मार्गदर्शन दिया हैं ।
जैनदर्शन का तपयोग कितना प्रभावशाली हैं, वह प्रत्यक्ष देख सकते हैं । विद्युत्-शक्ति से भी उसमें ज्यादा शक्ति हैं । विद्युत्शक्ति बाहर के सर्व पदार्थों को जला देती हैं, जैन की तप-शक्ति हमारे आत्मप्रदेशोंमें रही हुई कर्म की मलिनता को जला देती हैं ।
जैनशासन का यह तपयोग लोगों को आश्चर्यमें डाल दे ऐसा
पू. जगवल्लभसूरिजीने वरघोड़े का वर्णन किया, यह वरघोड़ा धर्म-बीज का अद्भुत अनुष्ठान हैं । वरघोड़े से ही हजारों-लाखों के हृदयमें प्रशंसा का भाव उत्पन्न होता हैं । (कहे कलापूर्णसूरि - ४00monsooooooooooom १४५)