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(२१) ऋषभ आदि २४ के मुख्य श्राविकाओं की संख्या का वलय ।
(२२)९६ भवन योग । (२३)९६ करण योग । (२४)९६ करण । यहां करण याने चिन्मात्ररूप समाधि ! (२१) पद ध्यान :
द्रव्य से लौकिक राजादि का पद (राजा, मंत्री, खजानची, सेनापति, पुरोहित) लोकोत्तर पद आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, गणावच्छेदक और स्थविर ये पांच हैं ।
एसो परमो मंतो, परम रहस्सं परंपरं तत्तं ।
नाणं परमं नेयं, सुद्धं झाणं परं झेयं ॥ परमेष्ठी नमस्कार की महिमा यहां व्यक्त होती हैं ।
यह नवकार परम कवच, खाइ, अस्त्र, भवन, रक्षा, ज्योति, शून्य, बिंदु, नाद, तारा, लव और मात्रा हैं ।
'- यह अरिहाण स्तोत्र की वानगी हैं । (२२) परम पद ध्यान :
पांचों परमेष्ठी पदों की अपनी आत्मामें स्थापना । उसकी स्थापना से स्व को परमेष्ठीरूप सोचें ।
(२३)सिद्धि ध्यान : द्रव्य से लौकिक अणिमा आदि आठ सिद्धियां लोकोत्तर सिद्धिः रागद्वेषमें मध्यस्थरूप परम-आनंदरूप सिद्धि। भावसे सिद्धि : मोक्ष । अथवा सिद्धों के ६२ गुणों का चिंतन करना वह भावसे सिद्धि । (२४)परम सिद्धि :
परमात्मा (सिद्ध) के गुणों को स्वयं की आत्मामें आरोप करना वह हैं ।
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(कहे कलापूर्णसूरि - ४00amasomooooooooooo0 १५७)