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संस्कार मिले । वहां से सद्भाग्य से भद्रेश्वर आया । वहाँ पूज्यश्री के संसारी श्वसुर पूज्य कमलविजयजी महाराज मिले । तंदुल मत्स्य की उन्होंने बात की । उनके साथ छसरा आया । दो प्रतिक्रमण का अभ्यास किया ।।
उस समय पूज्यश्री का अंजारमें चातुर्मास हुआ । उसके बाद तो विहारमें भी साथ रहा । ७ वर्ष तक पूज्यश्री के साथ रहा ।
२० साल पहले यहीं के चातुर्मास के समय मेरे संसारी पिताश्रीने रसोड़ा खोला था । उसके बाद पूज्यश्रीने संयम-दान देकर आगमों का दान किया ।
पूज्य कलाप्रसूरिजी, पूज्य पंन्यास कल्पतरुविजयजी, पूज्य पंन्यास कीर्तिचंद्रविजयजी इत्यादि सबका मुझ पर उपकार हैं । पूज्य गणिश्री मुक्तिचंद्रविजयजीने योगोद्वहन की क्रियाएं कराइ । कभी आधी रात को भी क्रियाएं कराइ । उनका उपकार कैसे भूल सकता हूं? पूज्य गणिश्री पूर्णचंद्रविजयजी, पूज्य गणि मुनिचंद्रविजयजी के पास मैंने अभ्यास किया हैं ।
(पूज्य आचार्यश्रीकी निश्रामें चलती सात ९९ यात्राओं का भार पूज्य पं. मुक्तिचंद्रविजयजी आदि पर डालकर मृग. शु. ६ की सुबह पूज्य आचार्यश्री पालीताणा से अहमदाबाद की तरफ ९९ वर्षीय पूज्य आचार्य श्री विजयभद्रंकरसूरीश्वरजी के वंदनार्थ विहार कर रहे थे तब समाचार मिले : आज ही पूज्य भद्रंकरसूरीश्वरजी महाराज कालधर्म पाये हैं ।)
आत्म-अवलंबन कैसे किया जाय !
पूज्यश्री : प्रथम परमात्मा को समर्पित होकर उनका अवलंबन लें । उनके गुणोंमें तादात्म्य होने से 'मैं कुछ हूं' इत्यादि अहंकाररूप विकल्परहित हो सकते हैं। ऐसा शुद्ध परिणाम आत्मा का अवलंबन हैं । ज्ञानस्वरूप ऐसे आत्मा की यह दशा ही समभाव हैं ।
- सुनंदाबहन वोराहा
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(कहे कलापूर्णसूरि - ४0000000000000000000 ३३५)