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बेड़ियां तोड़ने का आह्वान स्वीकार कर लिया था न ? उनके सामने साक्षात् भगवान कहा थे ?
मान लो कि साक्षात् भगवान आ जाये तो क्या हम पहचान सकेंगे? भगवान को पहचानने के लिए आँख चाहिए । सम्यग्दर्शन की आख के बिना भगवान को पहचान नहीं सकते ।।
* भगवान धर्म (चारित्रधर्म) के नायक हैं । द्रव्य से भी चारित्र भगवान के बिना दूसरे कहीं से मिल सकता हैं क्या ? त्याग-वैराग्य का उपदेश नहीं सुनते तो संसार छोड़ने का मन हो सकता क्या ? त्याग-वैराग्य का उपदेश देनेवेला गुरु के पूर्वजोंमें अंतिम भगवान ही आयेंगे न ? इस प्रकार मूल तो भगवान ही हुए न ?
११ अभिमानी ब्राह्मणों को नम्र बनाकर सम्यग्दर्शन की भेंट भगवान के बिना किसने दी? द्वादशांगी-रचना के लिए शक्ति किसने दी ?
* दो प्रकार के श्रुतकेवली : (१) भेदनय से १४ पूर्वधर ।
(२) अभेदनय से आगम से जिसने आत्मा को जान ली हैं वह । __व्यवहारमें निष्णात बना हुआ ही ऐसे अभेद नयसे श्रुतकेवली बनने का अधिकारी हैं।
भूमिका तैयार करनेवाला और स्थिरता देनेवाला व्यवहार हैं । तन्मयता देनेवाला निश्चय हैं ।
व्यवहार की धरती पर स्थित बने बिना निश्चय के आकाशमें उडने का प्रयत्न करने जाओगे तो हाथ-पैर टूटे बिना नहीं रहेंगे ।
अपने आप गोलियां लेकर आप नीरोगी नहीं बन सकते ।
अपने आप निश्चय को पकड़कर आप आत्मज्ञानी नहीं बन सकते ।
* शब्द भले अलग-अलग हो, पर अर्थ से सभी भगवान का कथयितव्य (कहने योग्य) तत्त्व समान होता हैं ।
अभिव्यक्ति अलग, अनुभूति एक ही ।
शब्द अलग, अर्थ एक ही । (२३४ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmm कहे कलापूर्णसूरि - ४)