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दो वर्ष मैंने आपकी बात मानी । अब आपको मेरी बात माननी हैं । कच्छ - वागड़ को हराभरा करना हैं । दादा के क्षेत्र को संभालना हैं । कच्छ- वागड़में जाकर क्या करना हैं ? ऐसा मत सोचें । वागड़में जो भाव हैं वे दूसरे कहीं देखने मिलेंगे ? कच्छ-वागड़में जाकर क्या करना हैं ? ऐसा पूछनेवाले को मैं पूछता हूं : प्रतिष्ठा आदिमें जाकर क्या करना हैं ?
मुझे पूछो तो कहूंगा : धामधूम इत्यादि मुझे थोड़े भी पसंद नहीं हैं । जिस क्षेत्रमें थोड़े घर, थोड़ा आना-जाना हो वह क्षेत्र मुझे ज्यादा पसंद आता हैं ।
हम दक्षिण इत्यादिमें गये वह कोई फिरने या प्रसिद्धि के लिए नहीं गये । वह बात अब पूरी हो गई । ज्यादा प्रसिद्धि अब मेरे लिए तो साधनामें बड़ा पलिमंथ ( विघ्न) बन गया हैं ।
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तीर्थंकर भगवंत की महिमा
• तीर्थंकर भगवंत मुख्य रूप से कर्मक्षय के निमित्त हैं ।
• बोधिबीज की प्राप्ति के कारण हैं ।
• भवांतर में भी बोधिबीज की प्राप्ति कराते हैं ।
• वे सर्वविरति धर्म के उपदेशक होने से पूजनीय हैं।
• अनन्य गुणों के समूह के धारक हैं ।
• भव्यात्माओं के परम हितोपदेशक हैं ।
• राग, द्वेष, अज्ञान, मोह और मिथ्यात्व जैसे अंधकारमें से बचानेवाले हैं ।
• वे सर्वज्ञ, सर्वदर्शी और त्रैलोक्य प्रकाशक हैं ।
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कहे कलापूर्णसूरि- ४