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भोजन भूख दूर करने के लिए तैयार हैं । आपको मात्र खाने की जरूरत हैं।
__ हम स्वयं तैयार न हो तो भगवान क्या करेंगे ? कमी हमारी या भगवान की ?
गुरु के योग से ही परमगुरु का योग होगा । गुरु पर भक्ति बहुमान बढे उतना आपको परम-गुरु का योग मिलता रहेगा । पंचसूत्रकारने वहां तक कह दिया : गुरु-बहुमाणो मोक्खो ।
गुरु बहुमान से मोक्ष मिलता हैं, ऐसा नहीं कहते, परंतु गुरु बहुमान स्वयं ही मोक्ष हैं, ऐसा कहते हैं ।
* आज वाचना रखनी नहीं थी, किंतु वासक्षेप इत्यादिमें, लोगों की भीड़में ही समय पसार हो उससे अच्छा वाचना रखें।
आपको जरुरत न हो, पर मुझे आपको देना हैं न ?
आधोइमें प्रथम उपधान के समय लोगोंने गुलाब-जामुन पसंद न किये । (कभी देखे नहीं थे - चखे नहीं थे) लेकिन जबरदस्ती खिलाये, तब काम हुआ । मुझे भी ऐसा करना पड़ता हैं ।
* राग-द्वेष आदि आपको पुराने मित्र लगते होंगे, तात्कालिक छोड़ न सको तो भी ये छोड़ने जैसे हैं, इतना तो अवश्य स्वीकारें ।
भगवान जैसी वीतरागता भले न मिले पर राग-द्वेष की कुछ मंदता तो आनी ही चाहिए । यही साधना का फल हैं। रुचि-अरुचि के प्रसंगमें दिमाग स्वस्थता न गंवाये तब समझें : राग-द्वेषमें कुछ मंदता आयी हैं ।
* छजीव-निकाय के साथ-क्षमापना करनेवाले हम साथ रहनेवालों के साथ क्षमापना नहीं करते हैं । इसलिए ही 'आयरियउवज्झाए' सूत्र हैं। नहीं तो वंदित्तु (पगाम सिज्जाय) और अब्भुट्ठिओमें क्षमा आ ही गई हैं । अब बाकी क्या रहा ? नहीं, अभी शास्त्रकारोंको बाकी लगा : इसलिए ही वे कानमें पूछते हैं : आप 'खामेमि सव्व जीवे' इत्यादि तो बोले, पर आचार्य, उपाध्याय, शिष्य, साधर्मिक, कुल, गुण आदि सहवर्ती के साथ क्षमापना की ?
(मृ.कृ. ५ के दिन इन्दौरमें कालधर्म पाये हुए पूज्य मुनिश्री कलहंसविजयजी (पू.आ.भ. के संसारी साले) कें देववंदन और गुणानुवाद हुए।)
(कहे कलापूर्णसूरि - ४ 00000000000000000 २८३)