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को आगे भी बढाते । पू. रामविजयजी को सरस्वती की इस गुफामें साधना कराई ।
किसी बहनने उनके व्याख्यान की प्रशंसा की, अतः स्वयं व्याख्यान नहीं देते थे ।
प्रवचनकार रामविजयजी, 'भानुविजयजी, चंद्रशेखर वि. आदि सबका वे उपयोग कर लेते ।
बड़े-बड़े शक्तिशाली आचार्य पर पूज्यश्री नाराज हुए हो तो उन्हें सालों तक एक भी शिष्य न हुआ हो, ऐसा हमने देखा हैं ।
हमारा अस्तित्व उन्हें आभारी हैं। मूक रहकर उन्होंने असाधारण कार्य किया हैं।
पूज्यश्री को शासन के लिए बहुत ही चिंता थी ।
दवा की भूल के कारण मुझे लकवा होने से वे चिंतित हो गये । पूज्य श्री शिवगंज थे । मैं नाणामें था । वे बेड़ामें आये । वहाँ ६०० आराधकों का उपधान होने पर भी वहाँ नहीं रुककर नाणामें मेरे पास आये । साधु का भोग देकर गृहस्थों की कभी उन्होंने खुशामद की नहीं हैं ।
___ 'चिंता मत कर । तू चलने लग जायेगा ।' गोदमें बिठाकर उन्होंने ऐसा मुझे कहा । उस समय जिनसेन वि.ने बहुत ही सेवा की थी । मुझे शिवगंज ले गये । जीये वहा तक मुझे जामनगर होस्पिटलमें रखवाया । वहा के मुख्य व्यक्ति जीवाभाई को 'मेरा लडका हैं ।' ऐसे कहकर सूचना दी । नहीं तो जीवाभाई क्या पैसा खर्चते ?
मुझ पर उनका असीम उपकार ! मैं फिर विचित्र स्वभाव का । उनको अनेकबार नाराज करता । कर्म साहित्य के लिए ना कहता । फिर भी वे सब अंदर ऊतार जाते । मुझ जैसे अनेकों का ऐसा अपमान निगल जाते ।
हम से काम लेने की उनकी जोरदार ट्रीक थी । दीक्षा के समय मैं ३० इंच का था ।
__दीक्षा के पहले मैं पूज्यश्री को मिलने मुंबई गया तो उन्होंने मुझे संथारा पोरसी गोखने बिठा दिया । पोणे घण्टेमें १७ गाथा करा दी और सूका मेवा दिलाया ।
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