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श्री
मुनि श्री कीर्ति मुनिश्री मनिन्द्रा यही भव्यात भव्य पंन्यास
ना.2-296 शुक्रवार महा
म जैन नया
जमा
पदवी प्रसंग, मद्रास, वि.सं. २०५२, माघ शु. १३
१८-१०-२०००, बुधवार कार्तिक
कृष्णा ६
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* प्रभु की कोई करुणा-दृष्टि हुई और गत जन्ममें हमने कोई पुण्य कार्य किया जिसके प्रभाव से धर्म सामग्री युक्त ऐसा जन्म मिला, जहाँ अरिहंत जैसे देव और उनके धर्म के बारे में सुनने मिला ।
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मात्र सुनने से भगवान के गुण नहीं आते, वे जीवनमें उतारने पड़ते हैं । दुकानमें माल देखकर खुश हो जाओ, इतने से माल नहीं मिलता, किंमत चुकानी पड़ती हैं । यद्यपि दुकान का माल देखकर आप खुश हो तो आपको कुछ नहीं मिलता, पर भगवान के गुणों को देखकर खुश हो तो भी काम हो जाय । ये गुण आपको मिल जायेंगे ।
गुणों का प्रारंभ कहाँ से करना ? भव-निर्वेद से । भव याने संसार । संसार याने विषय कषाय । जहाँ विषय हो वहाँ सभी दोष उत्कट होंगे ही ।
कषाय उत्कट
भगवान के प्रति बहुमान प्रकट होते ही हमारे गुण प्रकट होने लगते हैं, चित्त स्वस्थ होने लगता हैं । इसलिए ही स्वस्थता भगवान देते हैं, ऐसा यहाँ कहा हैं ।
(कहे कलापूर्णसूरि ४
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