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पूज्यश्री : किया हुआ नहीं तो जाना हुआ तो हैं ही । न जानें तो इन वणिकों को कैसे समझा सकू? आखिर तो हम वणिक के गुरु ही न ?
अतिदुर्लभा इयं मानुषावस्था । यहाँ से जाने के बाद फिर यह अवतार मिलना हमारे हाथमें हैं ? आप भगवान के पास बोधि मांगो पर कुछ भी आराधना करो नहीं तो उस आदमी के जैसे मूर्ख हो, जो थालीमें रहा हुआ खाता नहीं हैं और भविष्य के भोजन के लिए याचना करता रहता हैं ।
गौतमस्वामी प्रमादी थे इस लिए भगवान उसे बारबार कहते थे, ऐसे तो नहीं लगता हैं न ? भगवान गौतमस्वामी के माध्यम से समग्र विश्व को कहते थे ।
यह वाचना मेरे लिए ही कही जा रही हैं, ऐसा मानकर सुनोगे तो ही कल्याण होगा ।
मुझे तो एकेक क्षण की चिंता हैं। आपको न हो यह हो सकता हैं । आप छोटी वय के है न ? अभी बहुत जीना हैं । सच न ?
प्रधानं परलोकसाधनम् । ऐसी उंची कक्षा पर पहुंचने के बाद इस लोक की ही वाह वाहमें पड़े रहे, परलोक की थोड़ी भी चिंता न की तो फिर होगा क्या ? इस जीवन को परलोकप्रधान बनाना ही रहा ।
परिणामकटवो विषयाः । पांचों इन्द्रियों के विषय परिणाम से कटु फलवाले हैं । इन इन्द्रियों के विषयोंमें यदि लिप्त हुए तो साधना कैसे होगी ?
विप्रयोगान्तानि सत्सङ्गतानि । __ संयोग मात्र के नीचे वियोग छिपा हुआ हैं। संयोगमें आनंद माना तो वियोगमें आक्रंद करना ही पड़ेगा । हमें इष्ट के वियोग दुःखकर लगते हैं, परंतु संयोग ही इष्ट न माना हो तो वियोग दुःखरूप लगते?
पातभयातुरमविज्ञातपातमायुः ।। इस आयुष्य का बुलबुला चाहे तब फूट सकता हैं । रोज कितने-कितने का मरण सुनते हैं ? हमारी मृत्यु के समाचार भी कोई सुनेगा, यह विचार आता हैं ?
(२१४00mmmmmmoooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि-४)