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भगवान यदि न गये होते तो अश्वमेध यज्ञमें घोड़े की बलि दी जानेवाली थी । भगवान के पदार्पण से उसके द्रव्य और भाव दोनों प्राण बच गये ।
घोड़े के जीवने पूर्व जन्ममें जिन - प्रतिमा भराई थी । किया हुआ एक भी सुकृत कभी भी निष्फल नहीं जाता । इस सुकृत के प्रभाव से ही घोड़े को भगवान मिले थे ।
पूर्वजन्ममें घोड़े का जीव श्रावक शेठ का नौकर था । इस लिए ही उसे जिन - प्रतिमा भराने का मन हुआ था ।
अच्छे पड़ोशी से कितना लाभ ? संगम को अच्छे पड़ोसी मिले थे । इसलिए ही वह शालिभद्र बन सका । मम्मण को अच्छे पड़ोसी नहीं मिले इसलिए ही वह मम्मण बना ।
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आपको अच्छे पड़ोसी यहाँ भारतमें ही मिल सकते हैं, लेकिन आप तो अमेरिका आदि विदेशोंमें भागते हों । आपको विदेश जाना कि विदेशी आपके पास आये ?
घोड़े को भी प्रतिबोध देने का इतना प्रयत्न ऐसा कहता हैं : भगवान मात्र राजा-महाराजाओं को प्रतिबोध देने के लिए प्रयत्न करते हैं, ऐसा नहीं हैं। छोटे जीव के लिए भी इतना ही प्रयत्न करते हैं । इसलिए ही लिखा : हीनेऽपि प्रवृत्ति: । धर्म का फल भुगतने के चार हेतु हैं :
(१) भगवान का अद्भुत रूप
(२) प्रातिहार्य की शोभा । प्रातिहार्य उनके पास ही होते हैं, दूसरों के पास नहीं ।
(३) भगवान समवसरणादि की भव्य समृद्धि का अनुभव करते हैं। (४) देव भी भगवान के प्रभाव से ही ऐसा कर सकते हैं, स्वयं के लिए नहीं कर सकते । अतः ऐसे पुण्य के मालिक भगवान ही हैं ।
भगवान के नामसे, भगवान के वेष से भी जैन साधुको कितना मान-सन्मान मिलता हैं ? जैन साधु के रूपमें हम आधे भारतमें घुमकर आये, प्रत्येक स्थानमें मान-सन्मान मिला, वह भगवान का ही प्रभाव न ? भगवान का वेष भी इतना प्रभावशाली हो तो साक्षात् भगवान कैसे होंगे ?
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१८ कहे कलापूर्णसूरि ४