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ऊटी में पूज्यश्री, वि.सं. २०५३
७-१०-२०००, शनिवार अश्विन शुक्ला द्वि. - ९
व्याख्यान के समय पृथ्वीराज, मणिबहन, कंचनबहन, कल्पनाबहन, शांताबहन, चारुलताबहन के दीक्षा मुहूर्त के प्रसंग पर पूज्यश्री के द्वारा मुमुक्षुओं को हितशिक्षा ।
चारित्रधर्म दुर्लभ हैं । देशविरति भी दुर्लभ हो वहां सर्वविरति की क्या बात ? गुरु वाणी के श्रवण के बाद विषयों से वैराग्य जगता हैं, हृदय बोलता हैं : संसार छोड़ने जैसा हैं । संयम ही स्वीकारने जैसा हैं ।
ऐसा होने के बाद मुमुक्षु गुरु के पास ज्ञानादि की तालीम लेता हैं और वैराग्य पुष्ट बनाता हैं । क्योंकि वह समझता हैं :
पशु की तरह विषयोंमें ही रक्त बनकर पूरा करने के लिए यह जीवन नहीं हैं । संयम से ही इस मानव जीवन की सफलता हैं । भले यह कठिन हो, किंतु आत्मा के लिए हितकारी हैं ।
दीक्षा लेने के बाद भी योग्यता को विकसित करनी हैं । प्रभु-भक्ति, गुरु--आज्ञापालन, मैत्री आदि भावों के सेवन से योग्यता विकसती हैं ।
१२२ Domaaaaaaaooooooma कहे