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आप सब स्वाध्याय, संयम, सेवा, गुरु-भक्ति करें । गुरुभाईओं के साथ स्नेह से वर्तन करें । ऐसा करेंगे तो परलोकमें तो स्वर्गअपवर्ग का सुख मिले तब मिले, आपका यही जीवन स्वर्गीय सुख से भी ज्यादा सुख से छलक उठेगा ।
( दीक्षा मुहूर्त : मृगशीर्ष शुक्ल ५, शुक्रवार, ता. १-१२-२००० )
गुरु कृपा उन पर बरसे
ई.स. १९९९में पूज्यश्री को हैद्राबादमें वंदनार्थ जाना हुआ । वहाँ साधना की बातें हुई, फिर मैंने पूछा कि 'साहेबजी ! अब परदेश नहीं जाना हैं । स्व-आराधना करनी हैं ।'
पूज्य श्री : 'परदेश साधु नहीं जा सकते, आप वहाँ के धर्मजिज्ञासुओं को पोषण दो । यह स्व- पर श्रेय की प्रवृत्ति हैं । तत्त्वज्ञान ले जाओ, वहाँ पूरे प्रेम से दो । कम पड़े तो वापस ले जाना ।' निर्दोष हास्य- भरे ये वचन आशीर्वाद थे । मानो पूज्यश्री के शुभाशिष मिले हो वैसे वहाँ के जिज्ञासु व्रत, नियमों का पालन, सामायिक, घरमें ही छोटे मंदिरों को रखकर दर्शन, नवकार मंत्र का जाप करने लगे हैं । व्यसन और अभक्ष्याहार तो उन्हें स्पर्श भी कर नहीं सकता । परंतु वैसे मित्रों को भी वहाँ से पीछेहठ कराने जैसी शक्ति के वे धारक हुए हैं ।
पू. पंन्यासजी श्री भद्रंकरविजयजी का ग्रंथ 'आत्मउत्थाननो पायो'ने प्रायः पांचसौ जितने परिवारमें प्रसार प्राप्त किया हैं । उसके स्वाध्याय की सैंकड़ो कैसेट घरघरमें गूंज रही हैं । ऐसे हज़ारों मील दूर श्री महावीर भगवान के सच्चे अनुगामीओं को पूज्यश्री की वात्सल्यनिधि और तत्त्वलब्धि का प्रदान यह महासद्भाग्य हैं । जो उससे वंचित हैं उन पर अनुकंपा करें । गुरुकृपा उम पर बरसे।
सुनंदाबहन वोरा
कहे कलापूर्णसूरि ४
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