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मनफरा - कटारिया संघ, वि.सं. २०५६
१०-१०-२०००, मंगलवार
अश्विन शुक्ला - १२
ध्यान विचार : * परमलय :
परमलयमें आत्मा और परमात्मा दूध और पानी की तरह एक हो जाते हैं ।
दूधमें रहा हुआ पानी स्वयं को दूध के रूपमें देखता हैं, उस तरह प्रभुमें लीन बनी हुई आत्मा स्वको परमात्मरूप देखती हैं।
जहां तक ऐसा अनुभव न हो वहां तक इसके लिए अभ्यास चालू रखें ।
इसके लिए चारकी शरण स्वीकारें, इसका भी संक्षेप करना हो तो एक अरिहंत को पकड़ लें । यद्यपि, अरिहंत भी एक नहीं हैं, अनंत अरिहंत हैं । सिद्ध और साधु भी अनंत हैं, पर उनका धर्म एक हैं ।
* आनंदघनजी जैसे की स्तुति उपा. यशोविजयजी जैसेने की हैं । इनकी चोवीसीमें पूरा साधनाक्रम (मोक्ष तक का मार्ग) प्रभुदास पारेखने घटाया हैं । (कहे कलापूर्णसूरि - ४0000000 sonaso assess १३९)