________________
उपशम-क्षपक श्रेणिमें परम लव होता हैं ।
* ज्ञानादि तीनों मिले तो ही वास्तविक ध्यान लगता हैं । उसके पहले भावना, चिंता वगैरह होते हैं, पर ध्यान नहीं होता । निर्वात स्थिर दीपक जैसा स्थिर अध्यवसाय ध्यान हैं ।
(१९)मात्रा : उपकरण आदि की मात्रा वह द्रव्य मात्रा ।
समवसरणस्थ तीर्थंकर की तरह स्व आत्मा को देखना वह भाव मात्रा हैं ।
परमतत्त्व का चिंतन __ परमतत्त्व का या परमात्मा का चिंतन शुद्ध भाव का कारण बनता हैं । अग्निमें डाला हुआ सुवर्ण प्रतिक्षण अधिक-अधिक शुद्ध होता जाता हैं, उसी तरह साधक परमात्मा की भक्तिमें उनके गुण-चिंतन की अखंड धारा रखता हैं तो उसकी आत्मा भी ज्यादा से ज्यादा शुद्ध होती जाती हैं । प्रभुभक्ति का यह योगबल सर्वत्र और सर्वदा जयवंत हैं ।
- पू.आ.श्री विजय कलापूर्णसूरिजी
(कहे कलापूर्णसूरि - ४0000woooooooooooooo १४१)