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ध्यानके बिना केवलज्ञान नहीं मिलता ।
ध्यानको सिद्ध करना हैं, ऐसा संकल्प करके ही यहां आना । भूमिकामें ही समय न जायें इसीलिए मैं संक्षेप से कहना चाहता हूं ।
पूज्य यशोविजयसूरिजी : फरमाइए, कोई एतराज नहीं । पूज्य श्री : पहुंचना हैं प्रभुके पास । प्रभुके पास पहुंचने के लिए समता चाहिए । समता प्राप्त करनी हो तो चउविसत्थो, २४ तीर्थंकरोंको पकड़ो |
सामायिक के बाद चउविसत्थो आवश्यक हैं। यह क्रम भगवान की उपस्थितिमें गणधरोंने जोड़ा हैं, उसका ख्याल हैं न...?
२४ तीर्थंकरोंको जो नमस्कार करता हैं, उनका जो कीर्तन करता हैं, उसीकी ही साधना सफल बनती हैं, इसके पीछे का यह रहस्य हैं ।
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सिर्फ हमारे पुरुषार्थ से यह समता नहीं ही मिलती, यही समझना हैं ।
सामायिक समता साध्य हैं ।
जीवनभर महेनत करेंगे तो यह मिलेगी ।
श्रुत, सम्यक् और चारित्र सामायिक के ये तीन प्रकार हैं । यह कौन देता है ? धर्म ।
देव दर्शन, गुरु ज्ञान और धर्म चारित्र देता हैं । सामायिक चारित्ररूप हैं ।
चविसत्थो के लिए लोगस्स हैं। इस पर एक पुस्तक प्रकाशित हुई हैं । पढेंगे तो समझेंगे ।
चउविसत्थोको लाने के लिए वांदणा वगेरह आवश्यक चाहिए । * कोई न होने पर वापरने से पहले 'वापरुं' बोलने की आदत हैं । पू. कनक- - देवेन्द्रसूरिजी का देखकर हमने सीखा हैं । ऐसा तभी ही बोल सकते हैं, जब देव - गुरु सामने रहे हुए हैं, ऐसा दिखें ।
* हमारे यहां कदम-कदम पर कहा जाता 'देव गुरु पसाय' या पच्चकखाण पारना वगेरह हर प्रसंग में गिना जाता नवकार, वह भगवान की मुख्यता को ही बताता हैं ।
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कहे कलापूर्णसूरि ४