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नहीं बन सकता हो तो मनमें दुःख लगना ही चाहिए । ऐसा साधक दूसरीबार स्वादिष्ट वस्तुएं नहीं मंगवाता ।
लेते-रखते उपयोग न रखो तो स्व-परको नुकसान होगा । दूसरा जीव मर जायेगा । बिच्छु बगैरह डंक मारे तो स्वयं को भी नुकसान ।
कलकी ही बात करूं । छोटा पातरा हाथमें लेते अंदर कचरा दिखा । संभालकर हाथमें लिया, किंतु उसके बाद वह उड़ा । वह मच्छर था ।
प्रशंसाकी बात नहीं करता हूं। अभी स्वप्न आया था : स्वप्नमें मैंने देखा कि चारों तरफ निगोद थी । पैर कहां रखना ? वह सवाल था : मैंने संभालकर थोड़ासा जो निगोदरहित स्थान था वहां पैर रखा ।
वि.सं. २०११में राधनपुर चौमासेमें ओंकारसूरिजीने प्रश्न पेपरमें बुद्धिपूर्वक का प्रश्न पूछा था : नींद में मुनिको गुणस्थानक होता हैं या चला जाता हैं ? अर्थात् नींदमें भी जागृति चाहिए । तो ही गुणस्थानक टिक सकता हैं ।
* इतना नक्की करो : चलते और वापरते बोलना नहीं । तो वचनगुप्तिका अभ्यास होगा । अभी मौन रहोगे तो इकट्ठी हुई शक्ति व्याख्यान के समय काम आएगी । गृहस्थ लोग कमाइ को व्यर्थमें खर्च नहीं कर देते, हम बोल-बोलकर उर्जाका दुर्व्यय कैसे कर सकते हैं ?
अंधेरेमें पुस्तक पढ़ते देखतर पू. आचार्यदेव कनकसरिजीने मुझे टोका : 'आंखें खोनी हैं ? आगे चलकर नजर कम हो जाएगी।' मुझे तभी पू. आचार्यश्रीने प्रतिज्ञा दी । इसी के कारण आज मेरी आंखें अच्छी हैं।
बहुत पूछते हैं : 'आपको पढते समय चश्मा की जरुरत नहीं पड़ती ?'
मेरा जवाब होता है : 'आपके दर्शन के लिए जरुर पड़ती हैं, पढने के लिए नहीं ।'
नवसारीमें रत्नसुंदरसूरिजीने पूछा था : अब तक चश्मा नहीं पहना । अभी क्यों पहना ? (कहे कलापूर्णसूरि - ४00oooooooooooooom ४३)