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संसार दुःखों का चिंतन भी मनको स्थिर करता हैं । अनंत भवभ्रमण पर का चिंतन भी एक अनुप्रेक्षा हैं ।
* क्षमा आदि चार गुण (जिसे ४ कषाय रोककर रखते हैं ।) उत्तमोत्तम कब होते हैं ? उत्तम क्षान्ति आदि पैदा होते हैं तब शुक्लध्यान का आरंभ होता हैं ।
योग-शास्त्र के ४थे प्रकाशमें मार्गानुसारी, सम्यक्त्व, देशविरति वगैरह बताकर इन्द्रिय-कषाय मन वगैरह के जय पर विशेष जोर दिया हैं ।
वीर्य शक्ति प्रबल उतना ध्यान प्रबल ! वीर्यशक्ति को प्रबल बनाने के लिए ही ज्ञानाचारादि हैं ।
ध्यान के लिए ज्ञान और क्रिया दोनों शक्तियां विकसित करनी चाहिए । एकांगी विकास ध्यान की पृष्ट भूमिका नहीं बन सकता ।
___हेम परीक्षा जिम हुएजी, सहत हुताशन ताप; ज्ञान दशा तिम परखीएजी, जिहां बहु किरिया व्याप ।'
- उपा. यशोविजयजी । सच्चा ध्यान क्रिया को तो छोड़ता नहीं ही हैं, किंतु उसे विशिष्ट प्रकार की बना देता हैं । सच्चे ध्यानी की सभी क्रियाएं चिन्मयी होती हैं । अर्थात् ध्यान के प्रकाश से आलोकित होती हैं । ये क्रियाएं ध्यान से विपरीत नहीं, पर ध्यान को ज्यादा पुष्ट बनानेवाली बनती हैं। ___अंतमें एक बात कह दूं : खोई हुई आत्मा को ढूंढना हो तो जिन्होंने इस आत्मा को प्राप्त कर लिया हैं ऐसे भगवान की गोदमें बैठ जाओ। भगवान को सर्व प्रथम पकड़ो। इसीलिए ही ध्यानमें सर्वप्रथम आज्ञा विचय ध्यान हैं । प्रभु की आज्ञा आई वहां भगवान आ ही गये । भगवान का ध्यान वह निश्चय से हमारा ही ध्यान हैं ।
___ 'जेह ध्यान अरिहंत कुं, सो ही आतम ध्यान;
भेद कछु इणमें नहीं, एहिज परम निधान ।' ध्यान के बहुत प्रपंचमें जाना नहीं इच्छते हो तो एक मात्र प्रभु को पकड़ लो । सब कुछ पकड़ा जायेगा ।
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कहे कलापूर्णसूरि - ४)