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मनफरा - कटारिया संघ, वि.सं. २०५६
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६-१०-२०००, शुक्रवार
अश्विन शुक्ला - ९
सुबह ७.१५ से ८.०० ध्यान विचार :
* ऐसा कोई काल नहीं हैं जब तीर्थंकर नहीं होते । तीर्थंकर हो वहां चतुर्विध संघ रूप तीर्थ होता ही हैं। तीर्थ हो वहां तीर्थंकर की शक्ति सक्रिय होती ही हैं ।।
__ मोक्ष की इच्छा उत्पन्न करनेवाले भगवान हैं । जन्म से ही स्व को बकरी समझने वाले सिंह का सिंहत्व याद करानेवाला सिंह हैं । मोहराजारूपी चरवाहा हमेशा रखवाली करता हैं : यह जीव कहीं स्वयं के सिंहत्व (प्रभुता) को पहचान न ले ।
* अजैन कुंडली-भेद कहते हैं, उसे हम ग्रंथिभेद कहते हैं । ३॥ चक्करवाली कुंडली याने ३॥ कर्म समझें ।
* परमात्मा की भक्ति और जीवों की मैत्री दोनों एक साथ ही प्रकट होते हैं ।
* ४२ वर्ष पहले (सं. २०१४) सबसे पहले पू.पं. भद्रंकर वि.म. की मुलाकात हुई । उन्होंने मुझे योगबिंदु वगैरह ग्रंथों को पढने की सलाह दी थी । (कहे कलापूर्णसूरि - ४00 SS 0 SS 0 १०९)