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जैसे कि पू. देवचन्द्रजी कहते हैं,
'आदर्यो आचरण लोक उपचारथी,
शास्त्र अभ्यास पण कांइ कीधो, शुद्ध श्रद्धान वली आत्म-अवलंब विण,
तेहवो कार्य तिणे को न सीधो ।' बीजाधानका उपाय पाप-प्रतिघात हैं ।
पुद्गलका उपयोग चालु हैं । हम इच्छते हैं : हम इसमें से छूट जायें । होटलमें जाकर आप जितना उपभोग करो उतना बिल आयेगा । हमारे पुद्गलोंका बील नहीं चढेगा ? हमको पुद्गलों से छूटना हैं या इसी के ही चक्रमें फंसना हैं ?
ऐसी सामग्री बारबार मिलेगी? भगवान गौतमस्वामी जैसे को बारबार कहते थे : 'समयं गोयम ! मा पमायए ।'
तो हमारे जैसोंकी क्या हालत ?
शुद्ध धर्मकी प्राप्ति पापकर्म के विगमसे, पापकर्मका विगम (विनाश) तथाभव्यताके परिपाक से होता हैं ।
* सातत्य, आदर और विधिपूर्वक ही धर्म शुद्ध हो सकता
तीर्थंकर के आदर के बिना तीर्थंकर के धर्म पर आदर कैसे जगेगा ? सभीका मूल भगवान के उपरका बहुमान हैं ।
जइ इच्छह परमपयं, अहवा कित्ति सुवित्थडं भुवणे । ता तेलुक्कुद्धरणे, जिणवयणे आयरं कुणह ।
___ - अजितशांति अगर आप परमपद चाहते हो या जगतमें कीर्ति इच्छते हो तो जिनवचन में आदर करो ।
जिनवचन आगे करते हो तब भगवानको आगे करते हो । भगवानको आगे किये तो सब जगह सफलता ही सफलता ।
जिनवचन गुरुको आधीन हैं । गुरु विनयको आधीन हैं । 'नमो अरिहंताणं' में पहले 'नमो' विनयका सूचक हैं ।
तथाभव्यताका परिपाक करने के लिए दूसरे चार कारण नहीं, किंतु हमारा भगवानको प्राप्त करने का पुरुषार्थ ही मुख्य हैं। भगवान (६६ wwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - ४)