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एक वाहनका पाप भी अनालोचित हो तो नरकमें ले जा सकता हैं । ___वैक्रिय शरीरकी पीड़ा तीव्र होती हैं । क्योंकि बेहोशी नहीं होती । शरीर टूटता नहीं हैं ।
यहां जो सुख देता हैं, उसको भवांतरमें स्वर्गमें अनेकगुने सुख मिलते हैं। हमें सुख-दुःख दोनों से पर होकर मोक्षमें स्थित होना हैं । संसारका सुख हिंसा पर खड़ा हैं ।
___ पापमें जितना मजा ज्यादा उतनी सजा ज्यादा ।
पापमें जितना पश्चात्ताप ज्यादा उतनी मजा ज्यादा !
स्वर्ग हैं तो नरक हैं ही । प्रकाश हैं तो अंधकार भी हैं ही । आप मानते हो कि नरक नहीं हैं, किंतु मान लीजिए कि नरक नीकली तो क्या करेंगे ? आपकी मान्यता से कभी 'अस्तित्व' 'नास्तित्व' में बदल नहीं सकता, 'है' 'नहीं है' नहीं होगा ।
* पू. आचार्यदेव श्री विजयकलापूर्णसूरिजी : ____एक घण्टेसे वडोदराके विद्यार्थीओंने जो दृश्य बताया, वह देखने के बाद जिसके कारण नरकमें जा सकते हैं वे कारण तो मिटने ही चाहिए । नरकके चार द्वारोंमें प्रथम ही द्वार रात्रिभोजन हैं । उसका त्याग करना । कंदमूल भक्षण, परस्त्रीगमन, अचार बगैरह का भी त्याग करना । पंचेंन्द्रियकी हत्या तो होनी ही नहीं चाहिए । अपितु हत्या का बिचार भी नहीं आना चाहिए । ऐसे युगमें हमने जन्म लिया हैं जहां औषध के नाम पर ज़हर (जीवोंको मारनेका) का उपयोग होता हैं । चींटी बगैरह को मारनेके लिए, जंतुओं को मारने के लिए उपयोग होता जहर कुछ अंशमें मनुष्यको भी नुकसान करता ही हैं । धर्मी आत्मा ऐसी दवा (जहर) का उपयोग नहीं करता ।
२० साल पहले यहां पालीतानामें सूयगडंग सूत्र पढा था । उसमें नरक का वर्णन था । वह पढते हृदय कांप उठता हैं ।
चारमें से नरक भी एक गति हैं । चार गति के चक्रमें से बचने के लिए ही धर्मकी आराधना करनी हैं । महारंभ, महापरिग्रह, पंचेन्द्रिय, हत्या, मांसाहार - ये नरक के कारण जानकर उसका त्याग कीजिए । बड़े कारखाने बगैरह नहीं खोलो तो उद्योगपति शायद न बन सको, परंतु धर्मी तो बन ही जाओगे । (५२wwwwwwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - ४)