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को आप छोड़ दो, छलांग लगाओ तो पुल क्या कर सकता हैं ? भगवानको आप छोड़ दो, भगवान क्या कर सकते हैं ?
'नामादिक जिनराजना रे, भवसागर महासेतु ।' नाम-स्थापना आदि चार भव-सागरमें सेतु (पुल) हैं। भगवान भले नहीं हैं, परंतु उनका पुल विद्यमान हैं ।
__ भगवानको नाथके रूपमें स्वीकारने के बाद भक्त भगवानके समक्ष अनेक बिनंतीयां - आरझु कर सकता हैं। भक्तका यह अधिकार
'भगवन् ! आप तो राग-द्वेषादि छोड़कर मोक्षमें पहुंच गये हैं, किंतु मेरा क्या ? राग-द्वेषादि आपसे छूटकर मुझे चिपक रहे हैं । भगवन् ! मुझे बचाओ ।'
कभी भक्त भगवानको ऐसा उपालंभ देता हैं । उसमें भी भगवानको नाथके रूपमें स्वीकार ही हैं ।
अब तय करो : भगवान रूप इस पुलको छोड़ना ही नहीं हैं । यहां तक पहुंचे हैं वह इस पुलके आधारसे ही पहुंचे हैं ।
अब पुलकी उपेक्षा नहीं करते हैं ना ?
काउस्सग्ग नवकारवाली बगैरह कभी करते हो ? भक्तों बगैरह सबकी मुलाकात के बादमें करते हो ? नींद आती हो तब ? मेरे जैसे पहले प्रेरणा देते थे, किंतु बोल-बोलकर थक गया ।
ऐसे भगवान मिलने के बाद प्रमाद ? इस शरीरका क्या भरोसा? मैं स्वयं ३-४ बार मरते बचा हूं ।
वि.सं. २०१६में सबसे पहले जानलेवा बिमारी आई । डोकटरने कहा : T.B. हैं । सोमचंद वैद्यने कहा : T.B. - B.B. कुछ नहीं हैं । मेरी दवा लो ।
कहना पड़ेगा । भगवानने ही वैद्य को ऐसी बुद्धि देकर आठ दिनमें छाशके द्वारा खड़ा कर दिया ।
दूसरी बिमारी मद्रासमें आयी । मैंने रात्रिके समय कल्पतरुविजयको कह दिया : 'मैं जाता हूं । बचने की शक्यता नहीं हैं ।' मुहपत्तिके बोल भी मैं भूल गया था । वेदना भयंकर । पट्ट गिनते समय शांति भी नहीं बोल सकता था । किंतु भगवान बैठे हैं ना ? उन्होंने बचा लिया । (३६ mm s son कहे कलापूर्णसूरि - ४)