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जैनागम स्तोक संग्रह इन १८ भेद-प्रकार से जीव पाप उपार्जन करता है तथा ८२ प्रकार से भोगता है। ८२ प्रकार से पाप भोगे जाते है :
१ मतिज्ञानावरणीय २ श्र तज्ञानावरणीय ३ अवधिज्ञानावरणीय ४ मनःपर्यवज्ञानावरणीय ५ केवलज्ञानावरणीय ६ निद्रा ७ निद्रा-निद्रा ८ प्रचला ६ प्रचला-प्रचला १० स्त्यानगृद्धि (थिणद्धि निद्रा) ११ चक्षु दर्शनावरणीय १२ अचक्षु दर्शनावरणीय १३ अवधिदर्शनावरणीय १४ केवलदर्शनावरणीय १५ असातावेदनीय १६ मिथ्यात्व मोहनीय १७ अनतानुबंधी क्रोध १८ मान १६ माया २० लोभ २१ अप्रत्याख्यानी क्रोध २२ अप्रत्याख्यानी मान २३ अप्रत्या० माया २४ अप्रत्या० लोभ २५ प्रत्याख्यानी क्रोध २६ प्रत्या० मान २७ प्रत्या० माया २८ प्रत्या० लोभ २६ संज्वलन क्रोध ३० संज्वलन मान ३१ सज्वलन माया ३२ संज्वलन लोभ ३३ हास्य ३४ रति ३५ अरति ३६ भय ३७ गोक ३८ जुगुप्सा (दुर्गच्छा ) ३६ स्त्री वेद ४० पुरुप वेद ४१ नपुंसक वेद ४२ नरकायुष्य ४ नरक गति ४४ तिर्यञ्च गति ४५ एकेन्द्रियपना ४६ वेइन्द्रियपना ४७ त्रीन्द्रियपना ४८ चौरिन्द्रियपना ४६ ऋपभनाराच संघयण ५० नाराच संघयण ५१ अर्ध नाराच सघयण ५२ कीलिका संघयण ५३ सेवात संघयण ५४ न्यग्रोधपरिमंडल संस्थान ५५ सादिक संस्थान ५६ वामन संस्थान ५७ कुब्ज संस्थान ५८ हुण्डक संस्थान ५६ अशुभ वर्ण ६० अशुभ गन्ध ६१ अशुभ रस ६२ अशुभ स्पर्श ६३ नरकानुपूर्वी ६५ अशुभ गति ६६ उपघात नाम ६७ स्थावर नाम ६८ सूक्ष्म नाम ६६ अपर्याप्तपना ७० साधारण पना ७१ अस्थिर नाम ७२ अशुभ नाम ७३ दुर्भाग्य नाम ७४ दुस्वर नाम ७५ अनादेय नाम ७६ अयश.कीति नाम ७७ नीच गोत्र ७८ दानान्तराय ७६ लाभान्तराय ८० भोगान्तराय ८१ उपभोगान्त राय और ८२ वीर्यान्तराय।