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जैन श्वेताम्बर गच्छों का संक्षिप्त इतिहास ___ आर्यवज्र से वज्रीशाखा और आर्यसमित से ब्रह्मदीपिका शाखा अस्तित्व में आयी।
आर्यवज्र के ३ शिष्य हुए - १. आर्य वज्रसेन २. आर्य पद्म ३. आर्य रथ इनसे क्रमशः नागिली, पद्मा और जयन्ती शाखा प्रारम्भ हुईं।
उक्त स्थविरावली में आर्य रथ के पश्चात् जिन आचार्यों के नाम मिलते हैं, वे इस प्रकार हैं :
(१) पुष्पगिरि ___ (२) फल्गुमित्र (३) धनगिरि
(४) शिवभूति (५) आर्य भद्र 'प्रथम' (६) आर्य नक्षत्र (७) आर्य रक्ष
(८) आर्य जेष्ठिल (९) आर्य विष्णु (१०) आर्य कालक (११) आर्य सम्पालित (१२) आर्य भद्र 'द्वितीय' (१३) आर्य वृद्ध (१४) आर्य संघपालित (१५) आर्य हस्ति
(१६) आर्य धर्म 'प्रथम' (१७) आर्य सिंह (१८) आर्य धर्म 'द्वितीय' (१९) आर्य शाण्डिल्य इसी स्थविरावली में आगे १४ गाथाओं में विभिन्न आचार्यों का नाम देते हुए उनकी वन्दना की गयी है और अन्त में देवर्धिगणि क्षमाश्रमण को प्रणाम किया गया है । इसे कल्पसूत्रगत स्थविरावली का तृतीय खंड मान सकते हैं। इसमें उल्लिखित आचार्यों का क्रम निम्नानुसार है : १. फल्गुमित्र
१४. आर्य भद्र २. धनगिरि
१५. आर्य वृद्ध
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