Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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जैन -२.स २८४.
(३श्रुवारी
१ भाइये। प्रमाद निद्राको छोडकर लाभालाभ विचारो अपनि धर्मस्थिति की और तनिक मांख उठाकर देखो तो सही, पूर्वकाल में जैनधर्मका प्रकाश सर्वत्र सूर्यके माहीक चमकताथा भव वर्तमान छोटी २ बातें छोडकर देखो अपने परम पवित्र तिर्थों के ऊपरभी हाथ डालते कोई बिचार नहिं करता यह अपनी बेदरकारीका ही फल है ! हृदय कैसे रोका जाय कहना नही पडता है कि वह परमपूज्य श्री हीरविजयजी जैसे प्रभाविकाचार्यने बादशाह अकबरकों उपदेश देकर कैसे २ फरमानपत्र तीर्थरक्षा व जीवरक्षाके लिए कराए, अब उस्को अमलमें लानेकी कोशिश करनेमें भी हम असमर्थ होगये क हमारे परमपूज्य पवित्र तीथ पर हमेशाका कब्जा होते हुवेभी रक्षा करने में बेदखल होने लगे, अफसोस ! समस्त भार वर्षीय श्री तीर्थ रक्षण कमेटीकों इस तरफ सुभारा व प्रबंध करनेकी तरफ पूरा २ लक्ष देना चाहिए. और एक अच्छे प्रमाणीक व प्रभाविक इन्सपेक्टर फिरनेकी व्यवस्था की जाय और जगह २ ऐसे साइन बोर्ड द्वारपर लगाने चाहिए के, जिस चिजसे आसातना होताहो अंदर लेकर कोई न जा सके.
श्लोक ११-१२ चैत्यं चकारयेद्धन्यो जिनानां भक्तिभावितः । तत्परमाणुसंख्यानि वर्षाणि त्रिदशो भवेत् ॥ नवीनजिनगेहस्य विधाने यत्फलं भवेत् ।
तस्मादष्टगुणं पुण्यं जीर्णोद्धारेण जायते ॥ . २ एक समय ऐसा था कि बडे २ भव्य देरासर एवम् जिनालय अथ ग द्रव्य खर्च करके पुण्यवानोंने जैसेकी सम्प्रति कुमारपाल आदि महाराजा व वस्तुपाल तेजपाल आदि मंत्री व धनाशाह विमलशाह, आदि साहूकारों ने बनाकर इस आर्य भूमिकों जिन मंदिरोंसे विभूषित कर दी थी भब बहोतसे ग्रामों मे ऐसेही प्रान्तों में श्री जिनालयकी शोचनीय स्थिति होगई वास्ते जीर्णोध्धार कराना अपना श्रावकों का मुख्य कर्तव्य है कई जगह तो अन् मति पूजारे रखकर पूजा कराई जाती है. ठिक है आजतो पैसा खर्च जिन प्रतिमाकी पूजाकगनेका कार्य दुसरके सिपुर्द कर निश्चित होगये, अब उपवास व्रतादिभी गरिब भाइयोंको पैसा कर करावेगे उस्का भी कष्ट नहि उठाना पडेगा, बलिहारी इस भक्तिकी! जैसी देवकी आसातना होति है वैसी अपनी भी स्थिति खराब होती है वास्त स्वयम् पूजा करना अपना कर्तव्य है.
३ और उपरोक्त लिखे अनुसार मंदिर व धर्मस्थानों के द्वारपर नोटिस कान्फरंसकी तरफसे छपवाकर लगाने की व्यवस्था की जाय जिस्से कोई आसातना न कर सके.