Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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१८10)
भन है.....
कोमें वाणिज्य करते हुवेभी वाणीया नहीं कहलाती हैं; तो फिर जैनियों पर ही वाणिज्यका
जैसा क्या अहसान है कि जिसके सबबसे उनको अपने आपको वा यिा वाणीया कहना बहोत प्रिय लगता है. उत्तर और पूरब हिन्दुस्थानके जैनी वागीया के शद्वको कभी अपनी जबान पर नहीं लावेंगे वल्की बाणीया शब्दको वह के लोग अंक हलकी नगरसे देखते हैं.
श्री आदिनाथ भगवान के समयमें जातिभेद पाया नहीं जाता, उनके प्ररूपित जैन धर्म में चलने वाले" जैनी " अथवा " श्रावक" कहलाए. उन के मुपुत्र श्री भरत चक्रांने उस श्रावक वर्गकी भक्ति की. उनका भरण पोषण किया और उनको सोनेकी जनेउ पहनाकर सुशोभित किया. कालांतरमें उस उपयोगी वस्तुका गैरउपयोग हुवा. मुफ्तका खानेके लालचसे मुस्त कम हिम्मत आदमीयोंने अपने गलेमें जनेउ डाला. और उनका भरण पोषण होता रहा यहां तक कि समय पाकर उन लोगोंका ओक फिरकाही अलग वन गया. वह लोग ब्रह्मण के नामसे प्रसिद्ध हुवे. चरमतीर्थकर श्री महावीर स्वामीके समयमें तो चारो बर्ण मौजूद पाते हैं. परन्तु जैन धर्मके असन के मुवाफिक तो जो प्राणी शुद्ध अन्त:करणसे जैन धर्मको मानेगा वह ही जैनी अथवा श्रावक कहलावेगा. वर्ण भ्रांता जैन धर्ममें बिलकुल रह नहीं सकती श्री चरम तीर्थकरके अनुयायि दो प्रकारके थेः-जिन्होंने संसार त्याग किया यह श्रमण कहलाये. और जिन्होंने गृहस्थात्रासमें रह कर धर्मकी आराधा की वह " श्राद्ध कहलाये चाहो वह कोईभी क्यों न हो. उन श्राद्धों के बंशमें हालकी जैन समाज है. चाहो वह बीसा, दशा औसवाल, श्रीमाल, पोरवाडके नामसे क्यों न विख्यात हों.
इस कथनसे यह तो सावित हो गया कि, किसी समय भी जैन धर्मके अनुयायि चागें बर्णमेसे किसी वर्णके साथ नामजद याने प्रसिद्ध नहीं हुये. यह भी स्वयमेव सिद्ध है कि निर्फ बाणिज्य ही जैन समाजका काम नहीं है. देखो बस्तुपाल, तेजपालने राज्यमंत्री रह कर जैन धर्मके वास्ते कितना प्रयास किया, राजस्थान की तरफ नजर डाल कर देखो तो थोडे समय पहीले तक करीव करी कुल रियास्तोंमे करीब करीव सब बडे ओइदे दीवान वगरह के जैनियों में शुशोभित थे; अफसोस !! कि उनके अंदर विद्याके अभावसे विद्याके कृपापात्रोने उनपर हमला करके काबू पाया.
___ वाणीया अथवा वैश्य वर्ग जैन समाजको हरगिज लातु नहीं पड सकता. यद्यपि जैन धर्मकी जड हिन्दुस्थानमें है. हिन्दुस्थान में रहनेवी अपेक्षासे जैनी हिन्दू कहलाते हैं. तो भी धर्म की अपेक्षासे जो वर्ण वैष्णव धर्ममें कायम किये गये हैं, वह बर्ण जैन धर्मके माननेवालोंके साथ कुछ सम्बन्ध नहीं रख सकते. जैन धर्मके पालनेसे हमारी समाज " जैनी " नामसे विख्यात हुई, यद्यपि हमारे अंदर बहोत जियादा भाग क्षत्रीयोंका हैं (देखो, प्रथम