Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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१९१०]
एक आश्चर्यजनक स्वप्न.
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- हे भाई, जादे क्या कहुं यदि मैरी सर्व गतो कहने लगु तो बडा भारी समय खर्च होगा. वास्ते तूं कमतीमें जादे समझ लेना.
मैं:-हे मातेश्वरी, मै खूब समझ गया. अब आप अपना आसनपर बिराजियेगा. क्योकि अब मुझे कारुण्य माताके हाल सुनना है.
तत्पश्चात् वह प्रमोद माता सानंद आसनपर बैठ गई तब मै सविनय करजोडकर मैरी कारुण्य मातासे बोला.
हे कारुण्य माता अब तेरीबी छेक दशा कहकर सुनादे. क्योंकि मुझे तेराभी चहरा बहुत उदास मालुम होता है.
का०-हे पुत्र, मैरे नामका अर्थ करनेसे तूं खुद समज सक्ता है कि "अहिंसा परमोधर्मः" की जननी मैही हुं. और जहांतक मुझे अंगीकार नही करेंगे तहां तक प्राणीयोपर दया करना मुश्किल है ? परंतु आजकलकी वख्तमे तो मैरी पूछ तक नही होती. .
हे वत्स, जैनी लोग दया २ के पोकार तो बड़े जोर २ से करते हैं. मगर सच्ची दया करना अभी तक उनोने नही सीखा है.
हे भक्तिवान पुत्र, सर्व लोग छोटे २ जन्तुओपर दया बताते हैं. मगर गरीब जैनियोकी सार संभाल तो कोइ विरला पुरुषही करता होगा.
. हे भाई, जब अनाथ जैनियोकी तर्फ लक्ष होता है तो सिवाय पछतानेके कुछभी हाथ नहीं लगता. अहा आजकल न्यायशील ब्रिटिश गव्हर्नमेन्ट गरीबोंपर कितनी परवरिश करते हैं ! ठाम २ पर मद्रेसें (Schools,) औषधालय (Dispenceries) तथा अनाथालय (Poor houses) बनाकर हजारो अनाथोका पोषण किया है और करते है.
हमारे जैनियोमे सेंकड़ो लोग ऐसे हैं जिनकोकि दोनो वख्तकी रोटिये तक मुश्किलसे मिलती हैं ! परंतु साथका साथ देखा जावे तो हमारी ही सम्प्रदायम