Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference

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Page 404
________________ २६] જૈન કોન્ફરન્સ હેરલ્ડ. [असेम्१२. एक आश्चर्यजनक स्वप्न. (लेखक शेरसिंह कोठारी-सैलाना) अनुसंधान पाने ३०४ थी. एकदिन उस गरीब मित्रने बिचारकिया कि मैरा मित्र अमुक देशका दीवान होगयाहै सो अवश्यमेव वह मैरी दरिद्रता दूर करेगा और मुझे किसी कार्यमे लगा देगा, वास्ते मुझे उसके पास जाना चाहिये. ऐसा बिचारकर उसी वख्त अपने घरसे रवाना होकर अपने दीवान मित्रके पास पहुंचा, और चपरासीके साथ इत्तला करवाई की आपका अमुक मित्र आपको मिलनेको आयाहै. यह सुनकर यह दिवान मित्र बोला " जराठेरो आतेहैं " थोडीही देरीके बाद जबकी वह वाहर आया तो अपने मित्रको देखकर दिलमे बिचार करने लगा कि मै दिवान होकर इसके साथ मित्रके मुवाफिक कैसे पेश आउं. तब बड़े अभिमान के साथ वह दिवान मित्र बोला, " तूं कौन । है, और यहां क्यों आया है ? ये शब्द सुनकर विचारा गरीब मित्र बहुत लज्जित हुवा, मगर अपने दिलमे बिचार करके कि इसका अभिमान उतारना चाहिये, बोला “ हे भाई साहब आप भैरा नाम नहीं पूछते हुवे पहिले मैरे आनेका कारण सुनियेगा: मैने सुना के मैरा मित्र जोकि दीवान है, आजकल आंखोसे अंधा हो गया है वास्ते मैभी तुम पुरिषी (condolance) क लिये आयाहुं. अरे मित्र तूं एक उहदे को पाकर क्या इतना अभिमान करता है; थोडेही दिनो पहिले तो अपन साथ २ खेलते थे और आज तूं मैरा नाम पूछता है. वाह मित्र वाह ! धन्य है तैरा मित्रताको.! ये बचन सुनकर वह मित्र बहुत लज्जाको प्राप्त हुवा और उस गरीब मित्रको सादर अपने पास रखने लगा-इससे निश्च हुवा कि जो लोग अपने भाईयोका निरादर करते हैं वे मूर्ख शिरोमाण हैं.

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