Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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जैन कानफरन्सकी रीपोर्ट का अंतिम भाग, और बीकानेर के उपाध्याजी का बनाया । वृतांत ) तो भी हम अब अपने आपको किसी वर्णमें दाखिल नहीं कर सकते हैं. हमारा, तो बर्ण, जात, धर्म जो कुछ है उस सबका समावेश " श्रावक ' शद्वमेंही हो जाता है.
वैश्योंका या वाणायोका काम लडाई झगडा करनेका नहीं है क्यों कि, उनके चार वर्णाश्रित उनका काम सिर्फ रोजगार धंधा बाणिज्य करके उनके मुस्ककी दोलत वृद्धि करने का है,और उनके धर्म और संसारी व्यवस्थाका रक्षण क्षत्री बर्ण पर रखा गया है इस वास्ते वागीया बर्ग डर पोक बहोत होते हैं उनके नामकी छाया हमारे श्राद्ध बर्ग पर भी पडजानेसे वह डर उनके अंदरभी धर पकड कर बेठ गया, और डरको “ दया ' का जाहिरा कोट पहनाकर और भी पुष्ट किया. दयाका झंडा बेशक जैसा जैन धर्मने उठाया है, वैसा दुनिया भरमें कोईभा नहीं उठा सकता, और जहांतक इस दया का सदुपयोग हो वहां तक स्वपरोपकार होना है. परन्तु जब इसके अर्थका अनर्थ कर डाला जाता है, तब उससे धर्म और संसार पक्षको बहूत हानी पहुंचती है. देखो हमारे जान, माल, धर्मके रक्षणके वास्ते दयामयि धर्मके साथ साथही श्री रिखभदेव भगवानने मर्द की ७२ कलाएं सिखलाई है. किसी प्राणीको विनाकारण सताना, उसके उपर वार करना या उसका बुरा विचारना यह पापका हेतु है. परन्तु जब दूसरा मनुष्य अपने धर्मपर या अपनी इज्जतपर वार करता है तो धर्म और इजत की रक्षाके वास्ते स्वदया और परदया विचार कर उस को जवाब देना कंही मना नहीं किया गया है. देखो चेडा महागजा संग्राम करते हुवे दया को हाथ से नहीं छोडतेथे, संग्राम बंद करके हायके नीचे बैठ कर पडिक मणा करते थे, देखो दयासागर कुमारपाल राजा धर्मरक्षाके कारण अपने बहनोइसे संग्राम किया. देखो कालेकाचार्य (१ ले ) ने अपनी साधवी बहनके चारित्र को अखंडित रखने के हेतुसे गर्भभिल्ल राजास संग्राम किया. देवो वस्तुपाल तेजपालने ५३ लडाईयां की. इत्यादि जैन धर्ममें बहोत दाखले हैं; कि, दयानिधि रखते थे. यह हमारा बल पराक्रम इस " वाणीया " शब्द के सिखरपर अप पण कर दिया गया-अगरचे इस बल, प क्रिमकी इस समय के शान्त राज्यकी छा में अंश मात्र भी आवश्यकता नहीं है. तो भी हम क्यों अप। वर्ण बदल कर बजाय श्रावक के अपने आपको जागी कह कर हलकी पद्धति पर आयें! धर्मकी अपेक्षासे अथवा धंधेका अपेक्षासें हम हरगिज "वाका" नहीं है, और आशा की जाती है कि, हमारे स्वाने वान्धव इस तरफ ध्यान दे कर अपने आका " वाीया" हरगिज नहीं कहेंगे बल्की । जैनी " अथवा" श्रावक" दयासागर एक कीडी को भी सहारा नहीं चाहे वैसे गुणवान् साधू गजा महाराजा श्रावक भी धर्म और इज्जतकी रक्षा करनेको अपना बीर्य, बल, पराक्रमके फोरवणेसें कुछ कमी नहीं के नामले अपने आ को शोभित करेंगे.