Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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સચ્ચા સે મેર.
और भी लक्ष देकर प्रबंध करना चाहिए. विचारिये, समाजी, इसाई आदि कैसे २ उद्योग करतें छप्पनके दुःकाल में भिक्षा मांगते हुवे बालक जिनको स्पर्श करनेसे घृणा होती थी वेही अ बाबू कहे जाते हैं वैसा मार्ग अपनेकोभी अखतियार करना चाहिए.
पञ्चम विषय.
जीवदया
श्लोक १८-१९ तस्माद्धार्थना कर्तव्या प्राणीनां दया।
अहिंसालक्षणो धर्मोह्यधर्मः प्राणिनां वधः॥ यादृशं भुज्यते चान्नं बुध्धिर्भवति तादृशी ।
दीपेन च तमो भुक्तं नीहारोपि च तादृशं ॥ १ आसा परमो धर्मः यह अपने पवित्र धर्मका मूल सिद्धान्त है! ईस लिए जगह पांजराल वगेरा स्थान नीयत कर अनाथ पशु आदिका संरक्षण करना, तथा जो २ चिज जीवोंकी हिंसासे बनाई जाती है उसको काममें नहिं लाना कारण दया धर्मका मूल सिद्धान्त जैसे की परोंक टोपी, चर्बिकी मोमबती, साबुन, अशुद्ध शक्कर, अशुद्ध पदार्थोंसे बनाई हुई द ईयें व हाथी द तके चुडे आदि !
२ जीप दयाका प्रबंध अपने घरहीमें उपदेश करनेसे कैसे हो सक्ता है निरपरा दीन पशुओंको हथीयारोंकी तिक्षण धाराको त्राससे बचाकर इस आर्य भूमिको धन धा वृद्धिको प्राप्त करना है तो, वेजिटेरियन पक्षवालोंके माफिक रास्ता लेना चाहिए, त दयाका पूतल मि० लाभशंकर लक्ष्मीशंकरके विचार मुजिब सहायता देकर उपदेश प्रबंध होना च हिए, जिस्से रूका काम पेसेमे होना संभव है. .
३ दर साल विजयादशमी नवरात्री इन मांगलीक दिवसोमें निरपरावि पशुओं अभयदान दिलानेक लिए प्रथमसेही राजामहाराजाओंको दरखास्तें भेजकर वकालत क अपनें जैनियोंका व कॉन्फरसका खास फर्ज है.