Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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જેન કોન્ફરન્સ હેરલ્ડ
(ફેબ્રુઆરી
नुचित है. ऐसा होनेसे कई अनर्थ व्यभिचार ही दुषण पैदा होते हैं वास्ते रयाल रखना
अन्तिम प्रार्थना. उपरोक्त सर्व बाबतोंसे यह तो निःसंदेह विदित हो गया कि कोन्फरन्सने जो अपनी नतीकाही बीज बोया है इससे पूर्ण आशा है कि जैनकोम पीछी अपनी असली ह लतको पहुँच वेगी. परंतु अफसोस इस बातका हैकि हमारे कितनेक भाई पिनाही विचारे अक्षेप करते हैं • कान्फरन्सने अभीतक क्या कीयाहे. उन साहीबोंसे पूछना पडता है कि, मेहेरबानीकर इतना
फरमांवे की आपने कोन्फरन्सके कार्य में कितना प्रयास लीयाहै. हम टावेके साथ कह सक्ते कि जीतनो खामी इसके कार्यमें जीन साहोबोंको मालूम देतीहै वह उनही साहीब के तर्फकी हे गों कि कोन्फरन्स इमारत या कोई आदमी या कोई देवका नाम नहीं है, किंतु खास अपने वस्त भारतवासी जैनीयोंकी एक महासभ का नाम है. जोसमे आक्षेप करताभं शरीक है. इसके जो जा उद्देश है उनकों पार लगाना वो सर्वका फर्ज है. न की आक्षेप करनेका. क्यों ठहराव करनेवालेभी अपन और उसको अमल में लानेवालेभी अपन तो अब बताइए कि, आक्षेप सके उपर करते है. ख्याल करनेकी बात है कि, जैसा पहेनकर आरीसेमें देखेंगे स ही दिखेगा ससे कमज्यादा कब दिख सक्ता है. इसी तरह सुधारा व उन्नति वगेरा अपन करेंगे इतन ही गा ज्यादा कहांसे होगा. व स्ते हे बंधुओ! अपनी उन्नतिके लीये कोन्फरन्स् माताकी एक लिसे दृढ चित्त होकर भक्ति करना चाहीए. मेरी सर्व सज्जन पुरुषों से अन्तिम प्रार्थना है, ; जो जो रीवाज प्राचीन अथवा अर्वाचीन लाभदायक हो वही ग्रहण करना चाहीए. । जो रीवाज प्राचीन या अर्वाचीन कोइभी हानीकारक हो वह अवश्य त्यागना उचित है. इस्का म सच्चासो मरा है. इसीही द्वारा उन्नतिका विजय बावटा फरकाना चाहिए ॥ इ ते शुभंभवतु॥ शांतिः ॥ शांतिः ॥ शांतिः ॥ ___ अन्तिम मेरी सर्व जैन बंधुओंसे यह प्रार्थना है कि, जो २ इस लेखमें रार हो, उसको इण करेंगे. और जो २ असावधानीसे गलती होगइ हो, तो उसको सुधारले गें. ऐसी आशा , कोई धर्म विरुद्ध भूलसे बात लिखी गई हो तो उसके लिये मिच्छाभि दुकडं देता हुं.
श्लोक २९ मङ्गलं भगवान् वीरो, मङ्गलं गौतमः प्रभुः । मङ्गलं श्रीस्थुलिभद्राद्या, जैनो धर्मोस्तु मङ्गलम् ॥
॥ इति ॥