Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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१८४०)
एक आश्चर्यजनक स्वप्न ( लेखक शेगसिंह कोठारी उपदेशक ) अनुसंधान गतांकने पाने ११० थी
हे भाई यह भी बात जुरूर खयालमे रखना कि, जहांतक स्त्री ओंको शिक्षा नहीं दो जायगी तहांतक पुरुषोंका मुधारा होना काठिण है. सबब कि, लडके लडकीयोंकी करीब आधी उमर माताओं के पास बीत जाती है. तो यदि माताएं पढी लीखा हो तो अवश्यमेव बच्चोंको शुरूसे अच्छी तामील देती रहेंगी. और जो वह खुद मूर्ख होगी तो बच्चेभी बहुत करके मूही रहेंगे.
स्त्रायें पुरुषोंकी अर्धांगनाएं गिनी जाती है. सो यदि वह मूर्ख रह जावे तो पुरुष जैसे लकुवे ( Purulysis. ) के रोगले ग्रस्त होनेपर कुछभी नहीं कर सक्ते हैं. तैसेही हरेक कर्ष करनेमें प्रायःकरके असमर्थ हो जाते हैं ।
कितनेक दुष्ट पुरुषोंने मेरी बहनोंके कोल मगजोंमें यह बात नस २ मे भर दी है कि, जो स्त्रीयां पढती है. वद जल्दही विश्वधवार ( Vidouy. ) हो जाती है. परंतु भाई ! मैं अपनी बहनोंसे इतनी ही प्रार्थना करती हूं कि, जो कदापि यह बात सत्य होती तो सेंकडे सतिये वहत्तर कलाएं पढी हुई थी, सो क्या वह विधवाएं होगई थी? नहीं! नही! कदापि नहीं, यह तो केवल मृर्वताकी बातें हैं.
हे वन्स जब पुरुषों को कहा जाता है कि, अपनी स्त्रयों के इल्म क्यों नहीं पढाते? तो जवाब देते हैं कि, हमारी स्त्रीयें बहार पढनेकेलिये जा नहीं सक्ती. जबकी पुनःउन्हे कहा जता है कि, आप खुद क्यों नहीं पढाते तो अक्टके पीछे लट्ठ लेकर जबाव देते हैं कि, पढाने वाला तो गुरू होता है. तो क्या हम हमारी स्त्रयोंके गुरू बन जावें? वाह! वाह! धन्य है, विद्वान हों तो ऐसे ही हो. अरे भाई! वह पुरुष इतनाभी नहीं समझते कि, गुरू किसे कहते हैं, अच्छा तो ले मैंही अर्थ बता देती हुं. गुरू शब्दका अर्थ "श्रेष्ट " होता है. तो क्या पुरुष वीयोंमे श्रेष्ट नहीं हैं? अवश्य मेव है ही. औरभी देख एक कविने कहा है: -
. श्लोक गुरु.रनिद्विजातीनां । वर्गानां वामगोगुरुः॥ पतीरेको गुरू स्त्रीणां । सर्वत्रा भ्यागतो गुरुः ॥ ६ ॥