Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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જેને કેન્ફરન્સ હેલ્ડ
(जुन
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से निश्चय. अर्थ--- दयावान् पुरुष अपनः आयुष्य जादे , शरीर स्थूल , गेत्र श्रेष्ट, द्रव्य खूब,
वत्सल बहुत, टकुगई उंची, आरोग्यता को विस्तीर्ण पनमे त्रिजगतकी वाईको अल्पेतर और पड़ी है. संसार रूपी समुद्रको जलदी तिरने योग्य करता है
तब तो निश्चय हुवा कि, हिंसा रहित धर्मवालों के लिये लडकीको ३चना वह एक महान् दृष्ट कर्तव्य है.
हे प्यारे पुत्र ! मैं तुझे एक छोटासा दृष्टान्त बता देती हुँ जिससे कि तुझे अच्छी तरा | भावार्थहसे मालुम हो जावेगा कि बिचारी लडकीयोंको कितना दुःख सहन करना पडता है; होता है. परंतु वह दृष्टान्त कहनेके पेइतर मैं तुझसे यह बात दरियाप्त करना चहात्तीहुं कि बड़ों और | और छोटों तथा वरावरवालोंके आपसमें विदा ( Departure ) होती वस्त केला वीव होता है? एक कविं मै-हे उपगारिणी मातेश्वरी? बिछुडती वरूतमे बडे छोटों के सिरपर हाथ धरते हैं.
छोटे बडोंके पांवमे गिरते हैं और वराबर वाले या तो हरत मिलाप ( Shake-hand. ) या
आयुसमे आलिंगन ( Embrace ) करते हैं. अब मैत्री हे भाई जब ऐसा है तो लड़की अपने मुसर,लमे जाते वख्त पिताकों आटिंगनकी अविद्यासेतौर पर क्यो मिलती है! र प्रवेश मै-हे मातेश्वरी अवश्यमेव रुसूम तो यही है परतु कारण मुझे मा छुम नहीं.
मै० मैत्री- हे भक्तिवान् पुत्र ! यह रिवा न तवही से जारी हुवा है जबसे कि इस दुष्ट कन्याविक्रयने लापा अ करके आपना पञ्जा जम या है यह रिवाज क्यो जारो हुवः सो तुझे उसी दृष्टान्तमे बताती
हुई चली जाउंगी जो कि मैं कहना चहाती हुं. हे प्रिय पुत्र ! अब तूं उस दृष्टन्तको मन ... बचन और कायाके तं नो जागोंको एकत्रित करके मुन मै कहती हुँ:----
. किसी एक प्राममे एक कुबुद्धि नामक महाजन रहताथा; उसको एक मुशीला नामक प्रिय पुत्र थी. जब यह लडकी बड़ी हुई तब उसके दुष्ट पिताने विच र किया कि इस लडकीके अवश्यमेव पांच हजार को लेकर शादी करूंगा, इस बातको विचारते २ "वह लडकी वीस वर्षको होगई तहांतक उसके पिताने उसे नहीं व्याहो कितनेक दिके __. पञ्चात एक दुर्बुद्धि नामा महाजन् जो कि साठ वर्षका बुढा था, अपनी शदी करने के लिये
उधर आन निकला बस क्या पूछिये, “ ओंबतेको विठोना मिला " इस बात के मालुम होतेही उस कुबुद्धि नामा महाजनने ५००० रुपे लेकर अपनी लडकीको उसे देनेका विचार प्रकट किया. उस पुरुषको शादोतो करनाही था वास्ते अपना गृह वगैरा सत्र बेचकर रुपे दे दिये और सगाई ( Betrothul ) करली.