Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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में पाश्चयन समय
जबकि उस लहकीने यह हाल मुना तो बहुत पछताने लगी परंतु बिचारी यथ • न.मा तथा गुणा करके शेभित होनेसे कुछ भी नहीं बोल सकी.
___ अखीर कितनेक दिनांके पश्चात् उसकी श दी होनेपर जबकि वह लड़की अपने सुस राटको ज ने लगी तब पांवमे पडनेके बद्दल पिताके गलसे लिपट गई और बोली " हे पिता आपने तो अपना मतलब कर लिया परंतु मैरी क्या गती होग इस पर भी कुछ बिचा कियामा नही! उस दुष्ट पिताने उस वातपर कुछभी तवजे नही लेकर उस लड़की को बिद करदिया; हे सुर्शल पुत्र, उसी रे जसे यह आलिंगन करने का रिवाज जरो हुवा है खेर, अब आगेके हाल सुन:
जब कि वह लडको अपने मुसर लको जा रहीथी तब र स्तेमे वारंवार अपनी दशाक विचा कर रोती जाती थी. इतनेहं मे छोटे २ बचोंने जा कर उस दुलाह (Old brielegrooni को मारवडी भाषामे कहा " वा २ भा जी तो रेवे है" तब वह दुलाह विचारकर बोले "बेटा, अठे तो भाभी नीज रोवे हैं. पण घरां चालो आरा सब जणा रोवांला ! क्यु के घ हाट तो सब बेंचकर आय हां " वाह ! वाह ! धन्य है ३.
हे वत्स ! घर पर पहुंचनेके व द वह दुलाह राजा पांच छेही रोजमे कालको प्राई होगये. टाय २ इस घटनाको प्राप्त हे नेपर वह दुःखि या सुशीला अपनी सखियोंके सामने रो २ कर कहने लगीः
॥करिता॥ कैसा जुलम मुझपर हुवा । क्या करूं लाचार हुँ । इस जिंदगी मे मोत बहेत्तर ॥ जीनेने वेजार हूं ।। १ ।। लेकर पिताने अपनी दमडी । चमडी मेरी च दी। देखती आंखो मुझे लेकर कुवेमें गेर दा ॥ २ ॥ विन पतिके इस संसारमे । तिरियांका कुछ जीना नहीं। धरती फटेतो रामनी । मैं समाजावु यहीं ।। ३ ।। लेकर पिताने कर्ज अपना । छोड हित सुझसे दिया। तुमनेभी मुझको हे! पनि । छोड यहां किसपर दिया ॥ ४ ॥ वाली उमर चडनी जवानी । तुम बिना कैसे जिउं । दिल मेरे आती यही । अब भाग संग तुमरे दिउं ।। ५॥...