Book Title: Jain Shwetambar Conference Herald 1910 Book 06
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Jain Shwetambar Conference
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१८१० )
સચ્ચા સા મેરા.
अपने जैन में कितनिक जगह
व
(यू
दशमा विषय.
सुकृत भंडार फंड
कान्फरन्स निनावफंडके लिए प्रति मनुष्य ४ आना देवे ऐसी योजना की गई है परन्तु इस् सिवाय भी येग्य सहायता देना आवश्यक है. क्यों कि मुख्य आधार इसही पर है.
अग्यारहमा विषय अनुचित पढ़ी.
स्त्रीयोके पर्दा रखनेका अधिक प्रचार है. परन्तु देवगुरुक भक्ते व धर्मा बाधा हो ऐसी पर्दगी रखना ठीक नहिं तेसेही स्त्रीयोंके लिए बिल्कुल बेपर्द अनुचित है.
श्लोक २७ ( कवित )
सुकाज छोड कुकाज करे, धन जात है व्यर्थ सदा तिनको; एक रांड बुलाय नचावत है, नहीं आवत लाज जरा तिनको मृदंग भने धिक है धिक है, स्वर ताल पुछे किनको किनको; तब उत्तर रांड बतावत है, धिक है इनको इनको इनको.
ठराव एकपर दूसरी स्त्री, मरण पीछे पीटणा
कितना जगे यह रीवाज हैकिं कोई मनुष्य मरजानेसे स्त्रीवर्ग में खुले मुंह होकर पीट लीजाती है इसमे सीवाय कर्म बंधके और कुछ फायदा नहीं. मराहुवा पीछा नहीं आता सच्च रोना दीएके अंदर मोहनी के उदयसे होता है उसको रोकना मुश्कील है परंतु जाहेर बाजार बीचमें लोकोंबे देखते निर्लज्ज होकर मोटे आवाजसे गावके साथ पीणी लेलेकर शेना अपने जैनीयों के लीये अनुचित हे वास्ते इस प्रथाको बंध करनी चाहीए.
ठराव.
अपने कितनेक जैनबंधु प्रथम स्त्रीके साथ संबंध करके फिर विनाकारण निर्दोष अब लाको विनाधार छोडकर दूसरा विवाह करलेते हैं. यह विश्वासवती रीवाज आर्य लोकों के ली