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શ્રી જેન સત્ય પ્રકાશ [१५० सात 'बहुरत्ना वसुन्धरा' की उक्तिके अनुसार संसारमें बड़ी बड़ी शक्ति व ज्ञानके अधिकारी महापुरुष विद्यमान हैं, ज्ञानका सागर अपार है । एक प्रसङ्ग ऐसा उपस्थित हो गया कि वे एक सती साध्वी याकिनी महत्तराके पद्यको सुनकर उसका तात्पर्य न समझ सके, वह घटना इस प्रकार है।
एक दिन सायंकालके समय जैन उपाश्रयके पाससे होकर हरिभद्रजी घरकी ओर जा रहे थे, जैन उपाश्रयमें पण्डिता साध्वी याकिनी महत्तरा प्रतिक्रमण पूर्ण कर आवश्यकसूत्रको गाथाका स्वाध्याय कर रही थी
___ चक्कीदुगं हरिपणगं पणगं चक्कीण केसवो चक्की।
केसव चक्की केसव दुचक्की केसव चक्की अ॥ अर्थात्-दो चक्रवर्ती, पांच वासुदेव, पांच चक्रवर्ती, एक वासुदेव, एक चक्रवर्ती, एक वासुदेव, एक चक्रवर्ती, एक वासुदेव, दो चक्रवर्ती, एक वासुदेव और एक चक्रवर्ती इस क्रमसे भरतक्षेत्रमें अवसर्पिगी कालके अन्दर १२ चक्रवर्ती और ९ वासुदेव हुए ।
हरिभद्रजीने इस गाथाको सुना तो वे इसका तात्पर्य न समझ सके, उन्हें यह सब 'चक चक' शब्द प्रतीत हुआ और साध्वीके पास जाकर उसकी हसी उड़ाते हुए कहा-यह क्या 'चक चक, लगा रखी है ?
सुशीला साध्वीने उत्तर दिया-'नवलितः चिकचिकायते,' अर्थात् नवीन शास्त्र लिखते समय चिकचिक शब्द होता है। साध्वीश्रीसे शिष्य बनानेका आग्रह
हरिभद्र इस उत्तरसे लज्जितसे हुए, उन्होंने साध्वीश्रीसे गाथाका अर्थ बतलाने और अपना शिष्य बनालेनेके लिये आग्रह किया ।
श्री हरिभद्रजी अलौकिक बुद्धिवैभवके स्वामी होते हुए भी अति सरल, नम्र, विनीत एवं सत्यके जिज्ञासु थे, एक वैदिक आचार विचार और क्रियाकाण्डमें रमा हुआ विद्वान् इस
६ सुप्रासद्ध विद्वान् डा. हर्मन याकोबीने 'समराइञ्चकहा ' की प्रस्तावनामें इस घटनाका 'प्रभावकचरित 'के आधार पर इस प्रकार वर्णन किया है
एक दिन एक मस्त हाथी छूटा हुआ रास्तेमें उत्पात मचा रहा था, हरिभद्रजी भी इस उत्पातके भयसे भागकर जैनमन्दिर पर चढ़ गये और अपनी रक्षा की, यहां अन्दर जाकर तीर्थङ्करोंकी प्रतिमा देखी और एक श्लोक द्वारा ‘वपुरेव तवाचष्टे..., से उसकी हसी उड़ाई, जब घर जाने लगे तो एक वृद्ध साध्वीसे एक गाथा सुनी जिसका वह अर्थ न समझ सके । दूसरे दिन गाथाके अर्थ समझनेके लिये आये और तीर्थकर भगवानकी भी स्तुति की, इत्यादि ।
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