Book Title: Jain_Satyaprakash 1941 09 10 11
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 212
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दीपोत्सवी अ ] તક્ષશિલાકા વિધ્વંસ १ - मानदेवसूरि जो वृद्धदेवसूरिके शिष्य प्रद्योतनसूरिके शिष्य थे । ८ - ( खरतरगच्छ पट्टावली: " तपगच्छपट्टावली १० ) २ - समुद्र के पट्टधर मानदेव - ( खरतरगच्छ पट्टावली: तपगच्छपट्टावली ) ३ - प्रद्युम्न के पट्टधर मानदेव, " उपदेशवाच्य " तथा अन्य ग्रन्थोंके रचयिता । - ( तपगच्छपट्टावली ) ४ - बृहद्गच्छीय मानदेव - इनके शिष्य उपाध्याय जिनदत्तके शिष्य हरिभद्र हुए । ( मोहनलाल द० देशाई: जैनसाहित्यनो संक्षिप्त इतिहास, बम्बइ १९८९, पृ० १६३ ) ५ - निवृत्तिगच्छ मानवदेवसूरि- इनके शिष्य शीलाचार्य सं. ९२५ में हुए । -( देशाई: जै. सा. सं. इ० पृ० १८१ ) हमारे प्रबन्धके नायक इनमेंसे पहले ही है, क्योंकि प्रबन्धमें स्पष्ट लिखा है कि यह वृद्धदेवसूरि पट्टधर प्रद्योतनसूरिके पट्टधर थे । पावलियों के आधार पर अनुमान किया जा सकता है कि यह मानदेवसूरि विक्रमकी पांचवी शताब्दि में हुए होंगे । ९ खरतरगच्छ पट्टावलियोंके लिए देखो: इण्डियन एंटिकुरी, जिल्द- ११, पृ० २४५-५० मुनि जिनविजयः - खरतरगच्छपट्टावली संग्रह पृ० १९ १० तपगच्छपट्टा वलियोंके लिए देखो: - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 090 इण्डियन एंटिकुरी, जिल्द - ११ पृ० २५०-५६ जैन साहित्य संशोधक, खण्ड १ तृतीय अङ्क परिशिष्ट - पृ. १-६४ श्रीविजयानन्दसूरि : जैनतत्त्वा दर्श, अम्बाला १९३५, उत्तरार्द्ध, पृ० ४९६ - ५०० 000 ‘શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ’ના બે મહત્ત્વના અકા [ २०५ ] ક્રમાંક ૪૩ આ અંકમાં જૈનશાસ્ત્રોમાં માંસાહારનું વિધાન હોવાના આક્ષેપોને શાસ્ત્ર અને યુક્તિના આધારે સચોટ જવાબ આપવામાં આવેલ છે. For Private And Personal Use Only મૂલ્ય-ચાર આના [म्भ ४२मां पशु या संबंधी से छे. भूय-त्र माना] ક્રમાંક ૪૫ આ અંકમાં કલિકાલસર્વજ્ઞ શ્રીહેમચંદ્રાચાર્યના જીવન સંબંધી વિવિધ લેખા આપવામાં આવ્યા છે. મૂલ્ય-ત્રણ આના શ્રી જૈનધમ સત્ય પ્રકાશક સમિતિ જેસિંગભાઈની વાડી, ઘીકાંટા, અમદાવાદ 100

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