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खानदेश में प्राचीन जैन शिल्प
लेखक - श्रीयुत भा. रं. कुलकर्णी, बी. ए. शिरपुर ( प. खानदेश ).
खानदेश यह भारतवर्षके प्रथम श्रेणीके उपाजाऊ प्रांतोंमेंसे एक है । वर्तमानमें यहांकी काली भूमी कपासके लिये प्रासद्ध है । प्राचीन समयमें वह धान्यकी विपुलताके कारण विख्यात था । इस नैसर्गिक धान्यके भंडारके सहारे ही अण्टा विस्तीर्ण बौद्धविहार निर्माण हुए थे ।
इस प्रान्त में बौद्धा अवशेष अजण्टाके सिवा अन्यत्र नहि पाये जाते । किन्तु जैन शिल्पके अवशेष इस प्रांतमें चारों ओर मिलते हैं । और इससे पता चलता हैं की एक समय, खानदेशके कोने कोनेमें जैनधर्मके मंदिर इस प्रांतकी शोभाको बढ़ाते थे, इस भूप्रदेशके वैभवका प्रदर्शन करते थे, और यहांकी जनतामें दया और सहिष्णुताका स्रोत बहाते थे ।
यहांके जैन अवशेषोंमेंसे अजंटा के पासकी घटोत्कच गुफा और मांगीतुंगी क्षेत्र - इनका कुछ वर्णन गजेटियरोंमें दिया हुआ है । भामेरका परिचय आकिंओलॉजीके रिपोर्ट में मिलता है । अन्य स्थान स्थान पर विखरे हुए खंडहर और भग्न मूर्तियोंके टुकडोंका संकलित परिचय जैन इतिहासको दृष्टि न रखने वालोंको अनावश्यक ही नहीं साथ साथ अशक्य भी हैं।
खानदेशकी उत्तर सीमा सातपुडा पर्वत, दक्षिणमें सातमाला और अजंटा पहाड, पश्चिममें गायकवाडी और सूरत जिल्ला और पूर्वमें वराड प्रांत है । अजंटा और घटोत्कच ये अजंटा पहाडीमें, भामेर और मांगीतुंगी यह सह्याद्रीके उत्तरीय शाखाओंमें हैं । किन्तु सातपुडामें खानदेशकी बाजूके विभागमें रहे हुए जैन अवशेष, जो अभीतक सुज्ञ जगतको अज्ञात हैं उनका नाममात्र परिचय मैं इस लेख द्वारा कराना चाहता हुं ।
(१) नागार्जुन
सातपुडा पहाडोंमेंका सर्वश्रेष्ठ जैन शिल्प बडवानीका बावनगजा ' है । उस बावनगजाके ही पासमें इस पहाडके खानदेशकी बाजूपर तोरणमाल नामका एक नाथपंथीय महाक्षेत्र है । इस तोरणमालके मार्गपर जैन मूर्तियां मिलती हैं जिनका धार्मिक ज्ञान कौरव-पांडवों की कथासे अधिक बढने न पाया हो ऐसे यात्रियोंमेंसे किसीने उसको नागार्जुन बना दिया ।
(२) टवलाईकी बावडी
तोरणमालका मार्ग खानदेशकी सपाट भूमीपर जहांसे शुरू होता है उसी 'मार्ग पर टवलाई नामका एक भीलोंका छोटासा गांव है । उस गांव में एक अत्यंत भव्य और विस्तीर्ण सीढीयोंवाली बावडी काले पथ्थरकी बनी है । उसकी कमानों की दोनों ओर जैन तीर्थकरोंकी आसनस्थ मूर्तियां होते हुए भी किसी महेश्वर भट्टको ख्याल न पडनेसे यह बावडी बनी, ऐसी किं वदंती प्रचलित ही नहीं, खानदेश गेझेटीयर में और भूवर्णनोंमे छपी हुई है ।
x जैन सत्य प्रकाश वर्ष ६ अंक १२ पृष्ट ४४६ पर इसका कुछ वर्णन आया हुआ है ।
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