Book Title: Jain_Satyaprakash 1941 09 10 11
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 243
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कतिपय खरतरगच्छीय विद्वान् [संक्षिप्त परिचय ] लेखक : श्रीयुत हजारीमलजी बांठिया श्वेताम्बर जैनोंके गच्छों में खरतरगच्छ एक अति प्रसिद्ध गच्छ है । सदासे इस गच्छके विद्वान साहित्यकी सेवा करते आये हैं । इस गच्छमें अनेकों विद्वान, प्रभावक एवं प्रतिबोधक महापुरुष हुए हैं जिनका ऋण जैनधर्म व समाज पर है। उनकी विद्वत्प्रतिभा उनके रचित ग्रन्थोंके पठन-पाठन से मालूम हो सकती है । इस लेख में खरतरगच्छीय विद्वानोंका किंचित् परिचय दीया जा रहा है जो साहित्यप्रेमीयों को उपयोगी सिद्ध होगा । कपूरमल्लः – ये श्रीजिनदत्तसूरिजी के परमभक्त श्रावक थे । इनको एकमात्ररचना ब्रह्मचर्यपरिकरण ४६ गाथाकी है जो श्री नाहटा बन्धु लिखित मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि नामक पुस्तक पृ० ६० - ६४ में प्रकाशित है । श्रीजिनदत्तसूरिः — ये अत्यन्त प्रभावक महापुरुष हो गये हैं । इनकी विद्वत्प्रतिभा अनोखी थी । ये जिनवल्लभसूरिजी पाट पर हुऐ। इनका जन्म संवत ११३२ में हुंबड गोत्रीय वाहदेवीकी कुक्षिसे धवलकनाम नगर में हुआ । जन्म नाम सोमचन्द्र रखा गया । सं. १९४१ में दीक्षा हुईं। सं. १९६९ वैशाख वदि ६ शनिवारको आचार्य पदवी हुई और जिनदत्तसूरि नामसे सर्वत्र प्रसिद्ध हुए । ये खरतरगच्छके प्रथम दादा के नाम से संबोधित किये जाते हैं । इन्होंने ५२ वीर ६४ यौगणीको वशमें किया । इन्होंने कई चमत्कार भी दिखाये । कईको प्रतिबोध दिया । १ लाख ३० हजार जैन बनाये । जैन जनता इन्हें बडी श्रद्धासे पूजती है । इनके रचित स्तोत्रोंके जाप करनेसे महामारी आदि रोगकष्ट दूर होजाते हैं । इनका स्वर्गवास संवत् १२११ आषाढ सुक्ला ११को अजमेर में हुआ । आपका जीवनचरित्र श्रीनाहटा बन्धुओंकी ओरसे शीघ्र हो प्रकाशित होनेवाला है । जिनचंद्रसूरि : - ये जिनदत्तसूरिके पाट पर बैठे। इनका जन्म जैसलमेरके निकट - वर्ती विक्रमपुर गांव में साह रासलकी धर्मपत्नी देल्हण देवीकी कुक्षीसे वि. सं. ११९७ भादवा शुक्ला ८ को ज्येष्ठा नक्षत्र में हुआ । वि. सं. १२०३ फाल्गुण शुक्ला ९ को अजमेर में श्रीजिनदत्तसूरि दीक्षित किया । सं. १२०५ के मिती वैशाख शुक्ला ६ को विक्रमपुरके श्री महावीर जिनालय में श्रीजिनदत्तसूरिजीने स्वहस्तकमलसे इन प्रतिभाशाली मुनिको आचार्यपद प्रदान For Private And Personal Use Only

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