________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[२२८]
શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[१५ सात
.. (३) पांडव-खाण पश्चिम खानदेशके शहादे नामके तालुकाशहरके पास तीन मील पर गोमती नदीके पासमें काले पत्थरोंकी खदान है। उस खदान के पास पत्थरोंमें दो दो कोठडियोंका एक जोडा ऐसे दो जोडे खोदे हुए पाये जाते हैं । उन कोठडीयोमें एक छोटा गर्भाभार उसके सामने थोडा विस्तीर्ण सभामंडप ऐसी उनकी रचना है। गर्भागार और सभामंडप के बीच एक छोटासा द्वार है।
और द्वारके सन्मुख प्रमुख मूर्ति पद्मासनस्थ उसी पत्थरकी खुदी हुई बनी है। गर्भागारमें दोनों बाजू और सभामंडपमें सर्व बाजूओंमें दीवालों पर अनेक जैन मूर्तियां खडी और बैठी खुदी हुई हैं । गर्भागार लगभग ६४६ फीट और सभामंडप १०x१० फीट है। उनकी गहराई ७ फीट है और किसीको छत नहीं है । इन कमरोंमें उतरनेके लिये पत्थरकी सीढियां बनी हैं ।
इन मूर्तियोंके शिल्पसे वे इसवी ११ या १२ वी शताब्दिकी होनी चाहीये ऐसा अभिप्राय हमारे एक पुरातत्त्वज्ञ मित्रका है।
___ इस स्थानको बाजूमें लोक पत्थर निकालते हैं और इन मूर्तियोंको पांडवोंकी प्रतिमा समझकर इस पत्थरोंकी खदानको मराठीमें 'पांडवखाण' कहते हैं।
(४) काले पाषाणकी भग्न मूर्तियां चौंधी और शिरपूरकी उत्तरमें १५ मीलपर तथा शहादेसे पूर्व लगभग ३०-३५ - मीलपर इसी पहाडके सहारेसे रहनेवाले एक उजडे हुए गांवके खंडहरोंमें काले
पाषाणकी भग्न जिनमूर्तियां पाई जाती हैं । इसी प्रदेशमें यादवकालीन अवशेष और शिलालेख पाये जाते हैं। याने लगभग ७०० वर्ष पूर्व यह प्रदेश संपन्न अवस्थामें था।
(५) नागादेवी पूर्व खानदेशमें यावलके पास उत्तरमें ५-६ मीलके फासले पर एक नाग नामका स्थान बताया जाता है। वहां ग्वाल, मेडीये वगैरह लोग वहांकी मूर्तिको सिंदूर लगाकर नारियल चडाते हैं । पता चलता है के वह नागादेवी मूलतः जिनमूर्ति थी और अब अज्ञानके कारण सिंदूर में लिप्त होकर नागादेवी नामसे महशूर हुई है।
(६) बलसाणे भामेरके ईशान कोनेमें लगभग २० मीलपर बुराइ नदीपर प्राचीन शिल्पके विपुल अवशेष पाये जाते हैं । वहांके एक शिलालेखसे वे शालिवाहन शककी १२ वी शताब्दीके प्रतीत होते हैं । उनमेंसे अनेक शिवालय और एक देवीका मंदीर प्रेक्षणीय अवस्थामें है । हिंदुस्थान सरकारके पुराण वस्तु संरक्षक विभागने ये अवशेष अपने ताबे में लिये हैं । इन खंडहरों में भी मुझे एक भग्न जिनमूर्ति नजर आई है । वह नदीके घाटपर पड़ी हुई थी।
- इस दृष्टिसे खोजभाल करनेवालोंको यहांके गांवडों, पहाडों और निर्जन वनों में प्राचीन जैन शिल्पके अवशेष अधिकाधिक मिलना संभवनीय है।
खानदेशमें गत १-२ शताब्दिमें व्यापारके निमित्त आनेवाले गुजराती,
For Private And Personal Use Only